Saturday, April 9, 2011

ऐतिहासिक लम्हे के विश्वासघाती "चैम्पियंस"

जिस आईसीसी के अध्यक्ष को पत्रकारों को सम्मान देने की तमीज ना हो उसे हिन्दुस्तान के विश्व चैम्पियन को गुमराह करने का अधिकार किसने दिया। हिन्दुस्तान के विश्व चैम्पियंस देखते रह गए और कस्टम के कर्मचारियों ने अपनी ईमानदारी तले विश्वकप ट्राफी को कुचल दिए।

आईसीसी ने जो कुछ किया है उसे सुनेंगे तो खून खौल उठेगा। 28 साल के मेहनत को मटियामेट करके रख दिया है। ऐसी घटनाएं परंपराओं का हिस्सा नहीं होती और ना ही योजनाएं बनायी जाती हैं।यू हीं नहीं कोई विश्व विजेता बन जाता है। इसके लिए भरोसे की भट्ठी में तपना पड़ता है। जज्बातों को जरूरत की परखनली में उबलते हुए दिखाना पड़ता है।

भावनाओं के शेयर बाजार में भविष्य को दांव पर लगाना पड़ता है। तमन्नाओं की तीर निशाने पर चलानी पड़ती है। जुनून की हद से गुजरना पड़ता है। क्या कुछ नहीं किया हमारे दिलेर जांबाजों ने।पहले मगरूर कंगारूओ की टीम को पहले चोट किया फिर पाकिस्तान की धज्जियां उड़ायी। तब जाकर वानखेड़ें मैदान में श्रीलंका को रौंदने के लिए भारतीय टीम उतरी थी।

एक-एक गेंद के आगे देश का गुमान चल रहा था। एक एक शॉट पर भुजाएं फड़क रही थी। दिल के डैने बाज की तरह फड़फड़ाने लगे थे। उम्मीदों का उन्माद कहिए या उन्माद की उम्मीद। सांसे भारत में भी थमी थी और सांसे श्रीलंका में भी थमीं थी।एक एक पल चट्टान की तरह खिसक रही थी। वाकई ये मैच जज्बातों का था..ये मैच जीवट का था... मैच हुनर का था.. ये मैच हौंसले का था।

पलकें भी झपकने से इनकार कर दिया। लेकिन जैसे ही धोनी ने धमाके दार छक्का मारा। जज्बात दिल के दरवाजे तोड़ कर बाहर निकल पड़े। माफ किजिएगा हम ज्यादा जज्बाती हो गए...लेकिन क्या करे खुशी को संभाल नहीं पा रहे। मैच खत्म होते ही 11 खलनायक बन चुके थे और 11 विजयरथ पर सवार हो चुके थे। कभी ना खत्म होने वाली जश्न से देश सराबोर हो गया। जिस सचिन ने देश को 21 साल कंधे पर उठाया था उसी महानायक को पूरे खिलाड़ियों ने कंधे पर उठा लिया।

इतिहास रोज नहीं बनते। लेकिन ये भी सच है कि इतिहास बदलता है। 2 अप्रैल का दिन दोनों मुल्कों के लिए बाकी 364 दिनों की तरह नहीं रहने वाली। इस दिन हमारे महानायकों ने निर्वासन से आगमन और आगमनसे स्थापन तक का सफर पूरा करके शून्य से संभावनों का नया क्षितिज खोला है। आईसीसी अध्यक्ष माननीय शरद पवार की संदिग्ध मुस्कान ने भी कई राज खोले है। मैदान में मुस्कुरा तो ऐसे रहे थे जैसे ये ही जीतकर आए हों। महंगाई से इतर कोई पूछता नहीं लिहाजा अपनी पूरी ताकत ऐसे लोगों को नीचा दिखाने में झोंक देते है जिसे उठाने में उनका कोई श्रेय ना हो।

कहीं आते जाते भी नहीं....कैसे जाएंगे..इज्जत जो कम हो जाएगी। श्रीलंका से कप आ रहा था लेकिन मुम्बई के कस्टम विभाग के ईमानदार खिलाड़ियों ने कप को पहले ही मार लिया। सचिन,गंभीर,धोनी की सेना देखती रह गयी। 45 करोड़ की टैक्स माफी किया था। इस माफी पर क्या मुजरा किया है पवार साहब। और राजीव शुक्ला दबी जुबान से सच बोल रहे है। 121 करोड़ हिन्दुस्तानियों से विश्वासघात पर आईसीसी की सफाई में छिपी तिरस्कार की तीर से पूरे देश को आघात लगा है। सवाल ये है कि इस परंपरागत बेशर्मी का प्रतिरूप किसे माना जाए।

विजय गुप्ता

Tuesday, April 5, 2011

एक खेल ऐसा भी..........

खेल के जो रूप हाल ही में 2011  क्रिकेट विश्वकप में दखने को मिला है, वो शायद ही कभी फिर देखने को मिले। क्रिकेट तो हमेशा से ही हमारे देश में लोगों की आन बान और शान रहा है, यहां तक की क्रिकेट को धर्म की उपाधि तक दी गयी है। विश्वकप में फतह हासिल करने के बाद तो इस खेल ने अपनी सफलता की एक और इबारत लिख दी है और फिर से यह साबित कर दिया है कि क्यों क्रिकेट भारतवासियों की रग रग में समाया है। क्यों  अनिश्चितताओं का ये खेल लोगों के सोय हुए या फिर खोये हुए जज्बातों को जगा देता है। दौलत -शोहरत और संवेदनाओं से भरे इस खेल में इस बार जवान भारत का जोश भी नज़र आया और जीत का जज्बा भी। ये कहना बिलकुल गलत न होगा की इस विश्वकप में इंडिया एक बार फिर भारत बनकर सामने आया।

विश्वकप के दौरान भारतीय टी
म ने जिस जूनून का परिचय दिया वह निश्चित ही भारतवासियों के विश्वास और क्रिकेट के प्रति लगाव का ही नतीजा था। विश्वकप जीतकर एक और जहां भारतीय टीम ने पिछले 28 सालों से आये हुए सूखे को समाप्त किया वहीं सचिन के 21 बरस के करियर में जिस एक बात का मलाल था उसको भी  ख़त्म कर दिया है। क्रिकेट के इस महाकुंभ में भारतीय टीम के तेवर शुरुआत से ही विजेताओं जैसे रहे वही भारतीय टीम के समर्थकों का जोश भी पुरे चरम पर रहा

एक समय को बिखरी  हुई भारतीय टीम का मनोबल डिगा हुआ लग रहा था, ऐसी परिस्थितियों में भारतीय टीम के कोच का  काटों भरा ताज गैरी कर्स्टन ने पहना। यह गैरी कर्स्टन का ही करिश्मा है जिन्होंने भारतीय टीम को विश्व विजेता बनाया। विश्वकप जीतने के इस सफ़र के दौरान साउथ अफ्रीका से मुहं की खाने के बाद भारतीय टीम ने जीत की जो कभी न थमने वाली रफ़्तार पकड़ी वो निश्चित ही अद्वितीय रहीनॉक आउट मैचों में ऑस्ट्रेलिया और पकिस्तान के हौसले पस्त करने वाली भारतीय टीम अंतत विश्व विजेता बनकर उभरी

इस विश्वकप ने घंटों टीवी से चिपके रहने वाले और फेसबुक के जाल में फंसे दर्शक को भी क्रिकेट देखने के लिए मजबूर कर दिया रही सही कसर भारत-पाकिस्तान के रोमांचक सेमीफाइनल ने पूरी कर दी। कुलमिलाकर ये विश्वकप एक अरब से भी अधिक भारतियों के ख्वाबों को पूरा करने में सफल रहा, वहीं इस विश्वकप ने भारतीय टीम की कमजोरियों को भी छुपा दिया। क्रिकेट की इस जीत ने भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता को और अधिक उचाई पर पंहुचा दिया है और हर भारतीय को स्वयं और देश पर गर्व महसूस करने के लिए मजबूर कर दिया। क्रिकेट की इस चमक ने लोगों की दबी हुई संवेदनाओं को फिर से उजागर तो किया ही साथ ही क्रिकेट के उस रोमांच को भी जगा दिया जो आइ.पी.एल. की धन वर्षा में कहीं खो सा गया था 


स्वाती जैन