Tuesday, April 5, 2011

एक खेल ऐसा भी..........

खेल के जो रूप हाल ही में 2011  क्रिकेट विश्वकप में दखने को मिला है, वो शायद ही कभी फिर देखने को मिले। क्रिकेट तो हमेशा से ही हमारे देश में लोगों की आन बान और शान रहा है, यहां तक की क्रिकेट को धर्म की उपाधि तक दी गयी है। विश्वकप में फतह हासिल करने के बाद तो इस खेल ने अपनी सफलता की एक और इबारत लिख दी है और फिर से यह साबित कर दिया है कि क्यों क्रिकेट भारतवासियों की रग रग में समाया है। क्यों  अनिश्चितताओं का ये खेल लोगों के सोय हुए या फिर खोये हुए जज्बातों को जगा देता है। दौलत -शोहरत और संवेदनाओं से भरे इस खेल में इस बार जवान भारत का जोश भी नज़र आया और जीत का जज्बा भी। ये कहना बिलकुल गलत न होगा की इस विश्वकप में इंडिया एक बार फिर भारत बनकर सामने आया।

विश्वकप के दौरान भारतीय टी
म ने जिस जूनून का परिचय दिया वह निश्चित ही भारतवासियों के विश्वास और क्रिकेट के प्रति लगाव का ही नतीजा था। विश्वकप जीतकर एक और जहां भारतीय टीम ने पिछले 28 सालों से आये हुए सूखे को समाप्त किया वहीं सचिन के 21 बरस के करियर में जिस एक बात का मलाल था उसको भी  ख़त्म कर दिया है। क्रिकेट के इस महाकुंभ में भारतीय टीम के तेवर शुरुआत से ही विजेताओं जैसे रहे वही भारतीय टीम के समर्थकों का जोश भी पुरे चरम पर रहा

एक समय को बिखरी  हुई भारतीय टीम का मनोबल डिगा हुआ लग रहा था, ऐसी परिस्थितियों में भारतीय टीम के कोच का  काटों भरा ताज गैरी कर्स्टन ने पहना। यह गैरी कर्स्टन का ही करिश्मा है जिन्होंने भारतीय टीम को विश्व विजेता बनाया। विश्वकप जीतने के इस सफ़र के दौरान साउथ अफ्रीका से मुहं की खाने के बाद भारतीय टीम ने जीत की जो कभी न थमने वाली रफ़्तार पकड़ी वो निश्चित ही अद्वितीय रहीनॉक आउट मैचों में ऑस्ट्रेलिया और पकिस्तान के हौसले पस्त करने वाली भारतीय टीम अंतत विश्व विजेता बनकर उभरी

इस विश्वकप ने घंटों टीवी से चिपके रहने वाले और फेसबुक के जाल में फंसे दर्शक को भी क्रिकेट देखने के लिए मजबूर कर दिया रही सही कसर भारत-पाकिस्तान के रोमांचक सेमीफाइनल ने पूरी कर दी। कुलमिलाकर ये विश्वकप एक अरब से भी अधिक भारतियों के ख्वाबों को पूरा करने में सफल रहा, वहीं इस विश्वकप ने भारतीय टीम की कमजोरियों को भी छुपा दिया। क्रिकेट की इस जीत ने भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता को और अधिक उचाई पर पंहुचा दिया है और हर भारतीय को स्वयं और देश पर गर्व महसूस करने के लिए मजबूर कर दिया। क्रिकेट की इस चमक ने लोगों की दबी हुई संवेदनाओं को फिर से उजागर तो किया ही साथ ही क्रिकेट के उस रोमांच को भी जगा दिया जो आइ.पी.एल. की धन वर्षा में कहीं खो सा गया था 


स्वाती जैन

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