जिस देश में अब सरकार बुनियादी समस्याओं से जूझ रही हो, अपराध,आतंकवाद और भ्रष्टाचार जैसी जाने कितनी ही मुसीबतें सामने मुंह बाए खड़ी हों, जिस देश को अपने विकास के लिए जाने कितने ही मोर्चों पर संघर्ष करना बाकी हो, जिस देश को आज अपना धन और संसाधन खेल, मनोरंजन जैसे कार्यों र्से अधिक ज्यादा जरूरी कार्यों र्पर खर्च करने की जरूरत होए वह विश्व में सिर्फ अपनी साख बढ़ाने के लिए ऐसे आयोजनों की जिम्मेदारी उठाने को तत्पर हो तो आप इसे किस नजरिये से देखेगे।
राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन के संबंध में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का कहना है कि यह देश के लिए इज्जत का सवाल है। कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में सोनिया गांधी ने साफ तौर पर कहा कि राष्ट्रमंडल खेलों के सफल आयोजन से राष्ट्र की प्रतिष्ठा जुड़ी हुई है इससे किसी व्यक्ति या पार्टी का नहीं बल्कि पूरे देश का गौरव बढ़ेगा। प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह ने 64वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में खेलों के आयोजन को देश की प्रतिष्ठा से जोड़ते हुए देशवासियों से अपील की थी कि वे इसे राष्ट्रीय त्योहार की तरह समझें तथा उम्मीद जताई कि आयोजन की सफलता से विश्व में यह संदेश जाएगा कि भारत आत्म विश्वास के साथ तेजी से प्रगति कर रहा है। प्रधानमंत्री ने अपनी इस टिप्पणी में न ही राष्ट्रमंडल खेलों में व्याप्त भ्रष्टाचार का जिक्र कही न ही उन विस्थापितों का।
ऐसे सवाल से केवल देश की प्रतिष्ठा का नहीं है, बल्कि इसके साथ देश के लोगों की बढ़ती परेशानियों का प्रश्न भी जुड़ा है। एक ओर बढ़ती महंगाई के चलते आम लोगों का जीना मुहाल है तो दूसरी ओर सरकार राष्ट्रमंडल खेल के बढ़ते बजट को पूरा करने के लिए हरसंभव उपाय कर रही है, लेकिन आयोजन स्थलों के निर्माण के नाम पर विस्थापित किए गए हज़ारों लोगों को पुनर्वासित करने के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई है।
साल 2003 में भारत को इन खेलों के आयोजन की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी। राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में शायद ही कोई पहलू हो जिसकी समय सीमा को लेकर विवाद न उठा हो और खेलों के थीम सॉन्ग को जारी करने को लेकर भी यह दुविधा दिखी है। शुरुआत के साथ ही कार्यक्रम की जैसे हवा निकल गई। वर्तमान स्थिती यहाँ तक आ पहुची है कि सार्वजनिक क्षेत्र की लगभग सभी बड़ी कंपनियाँ अपने वायदे से पीछे हटती नज़र आ रही हैं।
अब आयोजन समिति सरकार से मिले करोड़ों रूपए कैसे लौटाएगी, इस सवाल का जवाब फ़िलहाल आयोजन समिति के पास भी नहीं है। लगता है जैसे खेलों के आयोजन से लोगों का विश्वास ही उठता जा रहा है।
अवनीश सिंह
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