Thursday, May 10, 2012

रण-बांकुरा सचिन


सचिन के बारे में कुछ कहने में जो शब्द इस्तेमाल किये जाते है वो शब्द अब खुद को सम्मानित महसूस करते है। अब सिर्फ यह तय करना है कि सचिन क्रिकेट को ज्यादा चाहतें हैं या क्रिकेट प्रेमी सचिन को। "शतको" का "शतक" जिसकी पहचान बन गयी है। सचिन रमेश तेंदुलकर क्रिकेट जगत का भगवान, अब तक क्रिकेट के महासंग्राम में पांच बार भारतीय क्रिकेट टीम का रण-बांकुरा, महासंग्राम को सपने में जीतने के सपने को पिछले साल खुली आँखों से देखकर पूरा कर चुका क्रिकेट का भगवान्। सचिन का अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट का सफ़र 23 वर्षों से भी अधिक का रहा है। इन तेईस वर्षों में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा सचिन ने। क्रिकेट में उन्होंने लम्बी दूरियाँ तय की, नई उचाइयां नापीं और कई कीर्तिमान मील के पत्थर के तरह स्थापित किये। इन सब में सबसे महत्वपूर्ण एवं बड़ी बात जो उनकी महानता को एक नई मजबूती प्रदान करती है कि वो कभी भी "विवादों" में नहीं रहे। उनका खेल "कला" कि शैली में आता है और शालीनता "सज्जनता" की कोटी में। सचिन ने ऐसे रिकार्ड स्थापित किये है जिन्हें तोड़ पाना मुश्किल ही नामुमकिन है। बीस साल, "शतको" का "शतक", और साथ में अनगिनत रिकार्ड।
आज सचिन सिर्फ नाम ही नहीं है। प्रतीक, विशेषण, उपमा आदि अनेक ऐसे शब्द सबसे सटीक जिस व्यक्ति पर बैठती है उसका नाम है सचिन तेंदुलकर। मानव स्वभाव की वजह से अधिकतर देखा जाता है कि थोड़ी बहुत सफलता मिलने के बाद लोगों के पाँव ज़मीन पर नहीं टिकते, लेकिन तमाम विश्वस्तरीय उपलब्धियों को हासिल करने के बाद भी उनके आचार-व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया। मैं चाहूँगा तब तक सचिन अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट खेलें जब तक यह खेल खेला जायें। इसका कारण उनका खेल के प्रति लगाव और सम्पूर्ण भावना के प्रति मेरा विश्वास अपने जीवन के 39 वसंत पार कर चुके सचिन को आज भी क्रिकेट खेलने में मज़ा आ रहा है। सचिन लगातार आक्रामक खेल रहे है और उनके इस तरह से खेलने के कारण उनके संन्यास लेने के कयास दिन-प्रतिदिन धूमिल होते जा रहे है।
सचमुच सचिन के जो स्ट्रोक है वे भारतीय क्रिकेटरों को दो पीढ़ियों के बीच पुल का काम करते है । एक वह पीढ़ी जो स्वभाविक इच्छा को दबाकर समय के अनुसार परंपरागत क्रिकेट खेलती थी और दूसरी वह जो इस तरह से बल्लेबाजी करती है की कल कुछ होने वाला है। सचिन के लिए आप कह सकते है कि वे अपने समय के सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटर है। आप इससे अधिक और नहीं कह सकते, क्योंकि तुलनाएं सिर्फ किताबी होती है और निरर्थक भी।
महान शायर बशीर ने अपनी एक कविता में लिखा है कि " इतना ना चाहों उन्हें कि देवता हो जाए"। लेकिन देखते - देखते लोगों ने सचिन को इतना चाहा की वह देवता तुल्य हो गए। अपने 23 वर्षों के लम्बे करियर के बाद भी सचिन की कलात्मकता में कोई कमी नहीं आई है।सचिन को 'सदाबहार' का दर्जा, 'मास्टर-ब्लास्टर' का दर्जा या ऐसे कई नाम ऐसे ही नहीं मिले, वर्षों की मेहनत और लगन के बाद वह इस मुकाम पर पहुचे है। सचिन आज रनों के एवरेस्ट पर बैठे है। उनके खाते में टेस्ट एवं वनडे मिलाकर लगभग 34000 रन है । लेकिन सिर्फ रनों का अम्बार ही सचिन को महान लोगो की श्रेणी में प्रथम पर नहीं लाता व्यक्तित्व उन्हें महान बनाता है। सचिन में आज भी वैसी ही सादगी ,शालीनता एवं सीखने की ललक दिखाई पड़ती है, जैसी 1989 में टेस्ट खेलते समय दिखाई दी थी।
लेकिन सबसे भयावह स्थिति तब सामने दिखती है जब उनके क्रिकेट को अलविदा कहने का ख्याल भी मन में आता है। लेकिन सचिन के सपने से बाहर आने के बाद महसूस होता है कि एक दिन ऐसा भी आयेगा जब वे क्रिकेट को अलविदा कह देंगे। क्या तब वे बच्चों, भोजन एवं करों की दुनिया तक ही सीमित हो जाएँगे? क्या वे दुनिया की सैर करते हुए, अपने रेस्तरां के लिए रसोइयों से व्यंजनों के नुस्खे लेंगे? क्या उनके पास अपनी फरारी चलाने के लिए समय होगा? मैं नहीं जानता और दुनिया के बाकि तमाम प्रशंसकों की तरह जानना भी नहीं चाहता।
लेकिन सचिन को उनके जन्म दिन की ढेरो शुभकामनाएं.........

"लेखक सचिन का नहीं सचिन के खेल का प्रशंसक है"

No comments:

Post a Comment