
खेल चाहे जो भी हो पर एक बात तो साफ है कि
पैसे और शोहरत की कमी इसमें नहीं है। तभी तो बहुतेरे लोग इसे अपना प्रोफेशन बनाने
में लगे हैं। इसमें शारीरिक सक्षम लोगों को तो लम्बी फौज है, पर एक वर्ग ऐसा भी है जो खेल को केवल जुनून और जीवन की कठिनाईयों से न
हारने की जिद के आधार पर इसे अपना रहा है। इस वर्ग का विशेषण यह है कि शरीर के साथ
नहीं देने के बावजूद उनका जज्बा ही उन्हें लगातार आगे बढ़ने का हौसला देते हैं।
इन्हीं हौसलों के जरिए ही आज दुनिया भर में कई ऐसे खेल अस्तीत्व में आ गये हैं
जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। और बात जब महिलाओं की हो तो वह अपने-आप में
ही खास हो जाता है।
"कमल है कमजोर नहीं, शक्ति का नाम नारी है"- इस पंक्ति को चरितार्थ किया है मूल रुप से मेरठ
की रहने वाली व बीएचयू के दृश्य संकाय कला की छात्रा सुहानी विथिका ने। सुहानी ने दिखा
दिखा दिया कि अगर हौसला हो तो इंसान अपनी पहुँच से ऊपर तक मेहनत कर जो सपने देखे
हैं, वास्तविकता में उसे परिणीत भी कर लेते हैं।
कहते हैं कि इंसान यदि ठान ले तो वह कुछ भी कर
सकता है,
यहां तक कि असंभव को भी संभव कर सकता है। यही बात सुहानी पर भी लागू
होती है। मूक बधिर सुहानी की ढेरों उपलब्धियां उसकी जन्मजात कमी को कहीं पीछे छोड
चुकी है। हालांकि सुहानी की राष्ट्रीय स्तर पर पाई गई उपलब्धियों का रास्ता उन
कांटों भरे रास्तों से गुजरी है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। बहरहाल
उत्तरप्रदेश की इस होनहार वीरवान खिलाडी की नजर बुल्गारिया मे होने वाली डीफ
ओलंपिक के बैडमिंटन प्रतियोगिता में लगी है। जिसकी तैयारी में वह जुट चुकी है।
अपने दृढ़ निश्चय के बल पर शारीरिक अक्षमता को
मात देते हुए सुहानी ने अपनी अलग पहचान बना ली है। सुहानी विथिका ने औरंगाबाद में
1 अप्रैल से 5 अप्रैल तक चले नेशनल गेम्स आफ डिफ-2013 के बैडमिंटन प्रतियोगिता में
अपने बढि़या खेल से न सिर्फ बनारस बल्कि अपने माता-पिता का भी सम्मान बढाया है।
विथिका ने अपनी मां की मदद से बताया कि उसने
बैडमिंटन एकल प्रतियोगिता में शानदार प्रदर्शन करते हुए कांस्य पदक हासिल किया, जबकि मिश्रित युगल प्रतियोगिता में सुहानी व उसकी जोडीदार ने स्वर्ण पदक
प्राप्त किया।
सुहानी की सफलता से खुश सुहानी की मां रश्मि
लाल ने बताया कि अपने बच्ची की ऐसी हालत पर थोडी परेशानी तो जरूर हुई लेकिन
उन्होंने अपने बच्ची को इस कमी से लडने का जज्बा दिया। जब सुहानी डेढ साल की हुई
तब उन्हें पता चला की वो सुन नहीं सकती और जब 5 साल की हुई तो उसके न बोल पाने के
बारे में जानकर एक बार तो ऐसा लगा जैसे उनकी जिन्दगी ही खत्म हो गयी, लेकिन उस समय
सुहानी के पिता कर्नल श्यामलाल ने हार नहीं मानी और सुहानी का इलाज कराया हालांकि
इलाज के बाद सुहानी ने सुनना तो शुरु कर दिया लेकिन वह बोल नहीं पायी।
उन्होंने बताया की सुहानी ने भी कभी हार नहीं
मानी और अपनी कमजोरी को अपनी ताकत बना ली। अच्छी बैडमिंडन खिलाडी होने के अलावा सुहानी
आज लगभग हर खेल में माहिर है। यही नहीं वह एक अच्छी चित्रकार भी है। शटलर होने के
अलावा सुहानी स्विमिंग पुल में भी किसी से पीछे नहीं है।
दूसरी तरफ बीएचयू में प्रो. आरएन मिश्रा ने
बताया कि सुहानी के बढि़या प्रदर्शन से औरों को भी प्रेरणा मिल रही है। उन्होंने
कहा कि विश्वविद्यालय स्तर पर सुहानी को हर सम्भव मदद की जायेगी।
सुनील दूबे
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