Monday, March 25, 2013

सचिन के टेस्ट क्रिकेट से सन्यास लेने से खत्म होगा क्रिकेट का आकर्षण



सभी के मन में बस एक ही सवाल है कि लगातार फ्लॉप होने के बावजूद सचिन तेंदुलकर क्रिकेट से सन्यास क्यों नहीं ले रहे? लेकिन सचिन के अब तक के खेल को देखकर हर क्रिकेट प्रेमी यही चाहता है कि सचिन अभी और खेलें क्योंकि सचिन तेंदुलकर भले ही अच्‍छा प्रदर्शन न कर पा रहे हो लेकिन उन्‍हें अब भी टेस्‍ट क्रिकेट खेलते रहना चाहिए क्‍योंकि वह टेस्‍ट का एक मुख्‍य आकर्षण हैं अगर वह टेस्‍ट से भी सन्‍यास ले लेते हैं तो टे‍स्‍ट क्रिकेट खत्‍म हो जाएगा। सच तो यह है कि सचिन टेस्‍ट के लिए ही बने हैं। उनकी फिटनेस आज भी भारत के कई युवा खिलाडि़यों से बेहतर है।

सचिन के आलोचकों का कहना है कि सचिन अपने एड प्रेम के कारण क्रिकेट को मोह नहीं त्याग पा रहे हैं, हालांकि उनके आलोचकों को एक बात जरुर ध्यान रखना चाहिए कि ये वही सचिन हैं, जिनके बल्ले के खौफ ने दुनिया के सभी गेंदबाजों को रुलाया है।
उनके प्रशंसकों का मानना है कि सचिन के टेस्ट क्रिकेट से सन्यास के बाद क्रिकेट बहुत कुछ खो देगा क्योंकि यह दिग्गज भारतीय बल्लेबाज खेल के लिए "माराडोना और पेले को एक साथ रखने" के बराबर है।
सचिन ने अपने अब तक के कैरियर में रिकार्डो का जो पहाड़ मैदान में खड़ा किया है उसे शायद ही आने वाले दिनों में कोई छू पाए । सचिन के नाम वन डे , टेस्ट मैचो में सबसे अधिक मैच , सबसे अधिक रन , शतक, अर्धशतक बनाने का रिकॉर्ड जहाँ दर्ज  है वहीँ सबसे अधिक मैन आफ द मैच से लेकर  मैन आफ द सीरीज जीतने तक के रिकॉर्ड दर्ज हैं। तभी सर डॉन ब्रेडमैन ने एक दौर में सचिन में अपना अक्स देखा था और शेन वार्न  सरीखे कलाई के जादूगर की रातो की नीद को उड़ा डाला था।

सचिन के नाम अन्तर्राष्ट्रीय  क्रिकेट में 100 शतको का रिकॉर्ड दर्ज है । फ़रवरी 2010 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ वन डे में  दोहरा शतक लगाने  वाले पहले खिलाडी बनने के साथ ही गेदबाजी में अपना कमाल 154 विकेट लेकर दिखाया । साझेदारी बनाने से लेकर साझेदारी तोड़ने तक में सचिन का कोई सानी नहीं  था । दो बार उन्होंने वन डे मैचो में एक साथ 5 विकेट झटकने के साथ ही सर्वाधिक 62  बार मैन आफ द मैच से लेकर 15 बार मैन आफ द सीरीज का रिकॉर्ड अपने नाम किया।  वाल्श से लेकर डोनाल्ड , अकरम से लेकर वकार , शोएब अख्तर से लेकर ब्रेट ली और फिर शेन वार्न  से लेकर  मुरलीधरन सबकी गेदबाजी से सामने सचिन ऐसे चट्टान की  भांति डटे  रहते थे, जिनका विकेट हर किसी के लिए अहम हो जाता था।
15 नवम्बर 1989 को पाकिस्तान के विरुद्ध  महज 16 साल की उम्र में घुंघराले बाल वाले इस युवा खिलाडी ने जब  अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण किया था को किसी ने अंदाजा नहीं लगाया था कि भविष्य में यह खिलाडी  क्रिकेट के  देवता के देवता के रूप में पूजा जायेगा लेकिन सचिन ने अपनी प्रतिभा 1988 में ही दिखा दी जब अपने बाल सखा  विनोद काम्बली के साथ  664 रन की रिकॉर्ड साझेदारी कर इतिहास रच  डाला  था । पाकिस्तान के दौरे में अब्दुल कादिर की गुगली पर उपर से छक्का जड़कर उन्होंने अपने इरादे  जता  दिए थे । यही नहीं उस दौर को अगर याद  करें तो सियालकोट के टेस्ट में एक बाउंसर सचिन की नाक में जाकर लग गया । नाक से खून बह रहा था लेकिन इन सबके बीच सचिन मैदान से बाहर नहीं गए और डटकर गैदबाजो  का सामना किया ।

1990 में इंग्लैंड का ओल्ड ट्रेफर्ड सचिन का पहले शतक का गवाह बना जब उन्होंने विदेशी धरती से अपनी अलग पहचान बनाने में सफलता पायी । इसके बाद सिडनी और पर्थ की खतरनाक समझी जाने वाली पिचों पर सचिन ने अपनी शतकीय पारियों से प्रशंसको का दिल जीत लिया । इसके बाद तो उनके नाम के साथ हर दिन नए रिकॉर्ड जुड़ते गए । आज सचिन की इन उपलब्धियों के पहाड़ पर कोई खिलाडी दूर दूर तक उनके पास  तक नहीं फटकता ।  सचिन में एक खास तरह की विशेषता भी है जो उनको अन्य  खिलाडियों से महान बनाती है । उनका क्रिकेट के प्रति जज्बा देखते ही बनता है और पूरे करियर के दौरान उन्होंने इसे जिया । शालीन और शांतप्रिय होने के अलावे धैर्य और अनुशासन उनमे ऐसा गुण था कि विषम परिस्थितियों में में सचिन अपना रास्ता खुद से तय करते थे । कभी शून्य पर भी आउट हो जाते तो आलोचकों को करारा  जवाब अपने खेल से ही देते । टीम इंडिया में एक मार्गदर्शक के तौर पर उन्होंने युवाओ को एक नया प्लेटफार्म दिया जहाँ उनसे सलाह मांगने वालो में खुद धोनी , युवराज , भज्जी सरीखे खिलाडी शामिल रहते थे । प्रत्येक खिलाडी उनसे कुछ नया सीखने की कोशिश में रहता । यह हमारे लिए फक्र की बात है सचिन को हमने उनके शुरुवाती  दौर से खेलते हुए देखा है । आने वाले भावी पीढियों  को  हम सचिन की गौरव गाथा बड़े गर्व के साथ सुना पाएंगे ।

सचिन के लिए वर्ल्ड कप एक सपना था और धोनी की अगुवाई वाली टीम का हिस्सा बनने पर उन्हें काफी नाज है । इसकी झलक  वन डे सन्यास के समय उनके द्वारा दिए बयानों में साफ झलकी जहाँ उन्होंने टीम के वर्ल्ड कप जीतने पर  ख़ुशी जताई और अगले वर्ल्ड कप के लिए अभी से एकजुट हो जाने की बात कही । सचिन जैसे कोहिनूर अब भारत को शायद ही मिलें क्युकि  सचिन जैसे समर्पण की बात आज के खिलाडियों में नदारद है । क्रिकेट आज एक मंडी  में तब्दील हो चुका  है जहाँ खिलाडियों की करोडो में बोलियाँ लग रही हैं । सारी  व्यवस्था मुनाफे पर जा टिकी है जहाँ खेल का पेशेवराना पुराना अंदाज गायब है जो अस्सी और नब्बे के दशक में देखने को मिलता था । आज के युवा खिलाडियों की एक बड़ी जमात ट्वेंटी  ट्वेंटी के जरिये अपनी प्रतिभा को दिखा रही है जबकि वन डे और टेस्ट क्रिकेट से उनका मोहभंग हो गया है । यही नहीं इसमें उनका प्रदर्शन भी फीका ही रहा करता है । ऐसे में बड़ा सवाल यहीं से खड़ा होता है सचिन, गांगुली, राहुल , वी  वी एस  वाली लीक पर कौन आज के दौर में चलेगा वह भी उस दौर में जब ट्वेंटी ट्वेंटी टेस्ट से लेकर वन डे को लगातार निगल रहा है ।

 बहरहाल सचिन ने वन डे से सन्यास के बाद अभी टेस्ट मैच खेलने की बात कही है । यह उनके करोडो चहेते प्रशंसको के लिए राहत की खबर है लेकिन उनके वन डे से अचानक लिए गए सन्यास पर  सस्पेन्स अब भी बना है । आगे भी शायद यह बना रहे क्युकि मैदान से अन्दर और बाहर सचिन जिस शानदार  टाइमिंग से खेलकर कई लोगो को आईना दिखाते थे वैसी टाइमिंग उनके  सन्यास में देखने को नहीं मिली । जाहिर है सचिन पहली बार चयनकर्ताओ  के निशाने पर सीधे तौर पर आये और आखिरकार दबाव  झेलने की वजह से उन्होंने वन डे से अचानक सन्यास की घोषणा कर सभी को चौंका ही  दिया ।  इतना कुछ करने के बावजुद अगर उनकी काबिलियत पर अंगुली उठायी जाती है तो यह उनका अपमान ही है। टेस्ट क्रिकेट से सन्यास की बात उनके उपर ही छोड देना चाहिए, क्योंकि क्रिकेट के इस  शलाका पुरुष के उपर संन्यास के लिए दवाब डालना उनका अपमान करना ही है।

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