भारत की परम्पराएं और ग्रंथ जितने लोकप्रिय व आकर्षक हैं, वैसे ही लोकप्रिय हैं यहां के पारंपरिक खेल। यहां के परंपरागत लोकप्रिय खेलों में कबड्डी प्रमुख है। कबड्डी भारत में कई नामों से प्रसिद्ध है। दक्षिण भारत में इसे ‘छेदुगुडु’ या ‘हु-तु-तु’ कहते हैं, जबकि पूर्वी भारत में लड़के कबड्डी को ‘हाडुडु’ और लड़कियां ‘किट-किट’ कहती हैं। उत्तर भारत में इस खेल को ‘कबड्डी’ कहते हैं।
अनोखा हैं कबड्डी का इतिहास
पूर्णरूप से भारतीय खेल कबड्डी का इतिहास लगभग 4,000 साल पुराना है। कुछ लोगों का मानना है कि इसकी शुरुआत कुरुक्षेत्र में महाभारत के युद्ध से हुई जब अर्जुन का पुत्र अभिमन्यु सात योद्धाओं से लड़ रहा था। महाभारत में इसे ‘चक्रव्यूह रचना’ कहते हैं। अभिमन्यु इस व्यूह के तोड़ने में सफल रहा लेकिन मारा गया। कबड्डी के खेल में भी दोनों तरफ़ सात-सात खिलाड़ी होते हैं।
राष्ट्रीय स्तर पर भारत में कबड्डी को सन् 1918 में खेल के रूप में पहचान मिली। इस खेल के नियम भी इसी साल बनाये गये। सर्वप्रथम महाराष्ट्र राज्य ने इस खेल को राष्ट्रीय मंच उपलब्ध कराया। सन् 1923 में बड़ोदा में अखिल भारतीय कबड्डी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इस प्रतियोगिता के सफल आयोजन के बाद राष्ट्रीय स्तर पर देश में कबड्डी की कई प्रतियोगिताएं आयोजित की गयीं। सन् 1938 में कोलकाता में हुए ओलंपिक खेलों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कबड्डी दुनिया के सामने आया। भारत में इस खेल की लोकप्रियता को देखते हुए सन् 1950 में अखिल भारतीय कबड्डी संघ (आईकेएफ) का गठन किया गया। इसका मुख्य काम इस खेल के नियम तय करना है। वर्तमान में कबड्डी पूरे एशिया में खेला जाता है।
अनोखा हैं कबड्डी का इतिहास
पूर्णरूप से भारतीय खेल कबड्डी का इतिहास लगभग 4,000 साल पुराना है। कुछ लोगों का मानना है कि इसकी शुरुआत कुरुक्षेत्र में महाभारत के युद्ध से हुई जब अर्जुन का पुत्र अभिमन्यु सात योद्धाओं से लड़ रहा था। महाभारत में इसे ‘चक्रव्यूह रचना’ कहते हैं। अभिमन्यु इस व्यूह के तोड़ने में सफल रहा लेकिन मारा गया। कबड्डी के खेल में भी दोनों तरफ़ सात-सात खिलाड़ी होते हैं।
राष्ट्रीय स्तर पर भारत में कबड्डी को सन् 1918 में खेल के रूप में पहचान मिली। इस खेल के नियम भी इसी साल बनाये गये। सर्वप्रथम महाराष्ट्र राज्य ने इस खेल को राष्ट्रीय मंच उपलब्ध कराया। सन् 1923 में बड़ोदा में अखिल भारतीय कबड्डी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इस प्रतियोगिता के सफल आयोजन के बाद राष्ट्रीय स्तर पर देश में कबड्डी की कई प्रतियोगिताएं आयोजित की गयीं। सन् 1938 में कोलकाता में हुए ओलंपिक खेलों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कबड्डी दुनिया के सामने आया। भारत में इस खेल की लोकप्रियता को देखते हुए सन् 1950 में अखिल भारतीय कबड्डी संघ (आईकेएफ) का गठन किया गया। इसका मुख्य काम इस खेल के नियम तय करना है। वर्तमान में कबड्डी पूरे एशिया में खेला जाता है।

ऐसे खेंले कबड्डी
कबड्डी की संरचना आत्मरक्षा तथा आक्रमण के पद्धति को ध्यान में रखकर की गयी है। कबड्डी खेलने के लिए दो टीमें होती हैं, प्रत्येक टीम में 12 खिलाड़ी होते हैं। लेकिन इसमें से छह या सात को ही एक बार कोर्ट (पाले) पर जाने की अनुमति होती है। पांच खिलाड़ी रिजर्व होते हैं। खिलाड़ियों का चयन उम्र और वजन के आधार पर किया जाता हैं।
खेल के मैदान को 12.50 मीटर × 10 मीटर की एक सीमा रेखा से दो भागों मे बांट दिया जाता है। खेल के नियमानुसार टॉस जीतने वाली टीम के खिलाड़ी को विरोधी खेमे में एक ही सांस में कबड्डी.. कबड्डी.. कबड्डी.. बोलते हुए जाना होता है, और उनके खिलाड़ी को छुकर आना होता है। अगर खिलाड़ी छुकर वापस आने में सफल होता है तो उसकी टीम को अंक मिलता है साथ ही वह जिस खिलाड़ी को छूकर आता है, वह खेल से बाहर हो जाता है। विरोधी टीम का यह प्रयास होता है कि वह आने वाले खिलाड़ी को पकड़े और उसे वापस तब तक न जाने दे जब तक कि वह दूसरी सांस न ले ले। यदि खिलाड़ी एक ही सांस में कबड्डी बोलता हुआ अपने कोर्ट में नहीं आ पाता तो उसे खेल से बाहर होना पड़ता है।
इस तरह दोनों टीमें एक के बाद एक अपने खिलाड़ियों को एक दूसरे के कोर्ट में भेजती हैं। यदि खिलाड़ी खेल के दौरान तय सीमा रेखा से बाहर चला जाता है या उसके शरीर का कोई भी भाग सीमारेखा से छु जाता है तो इस अवस्था में भी उस खिलाड़ी को खेल से बाहर होना पड़ता है।
भारत में कबड्डी मुख्य रूप से 3 प्रकार से खेला जाता है- सरजीवनी, जेमीनी और अमर।
सरजीवनी
इस प्रकार के कबड्डी खेल भारतीय कबड्डी संघ के अंर्तगत आते हैं, जिनके नियम भी संघ ही निर्धारित करता है। इस खेल के नियम के अनुसार पहली टीम का खिलाड़ी अगर दूसरे टीम के खिलाड़ी को बाहर करता है, तो पहली टीम का बाहर हुआ खिलाड़ी टीम में फिर से खेलने के लिए आ जाता है।
जेमीनी
इस प्रकार के खेल में जब तक पूरे खिलाड़ी या टीम बाहर नहीं हो जाती, तब तक यह खेल चलता रहता है। इस तरह के खेल में समय का बंधन नहीं होता।
अमर
कबड्डी के इस प्रकार के खेल में अगर किसी खिलाड़ी को विरोधी टीम के खिलाड़ी द्वारा छु लिया जाता है तो वह खिलाड़ी खेल से बाहर नहीं होता बल्कि विरोधी टीम को एक अंक मिल जाता है। इसमें समय निश्चित होता है, व ज्यादा अंक बनाने वाली टीम विजेता होती है। कबड्डी के इस प्रकार का खेल उत्तर भारत के पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में एक घेरे के रूप में खेला जाता है। इसे सर्कल कबड्डी या अमर कबड्डी कहते हैं।यदि इस खेल को बिना तय सीमा रेखा के खेला जाता है तो इस प्रकार के खेल को गुंगी कबड्डी कहते हैं।
कबड्डी के सुप्रसिद्ध खिलाड़ी
अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित कबड्डी खिलाड़ियों में बलविंदर सिंह फिढ़्ढू, सदानंद महादेव शेट्टी, शकुंतला पानघर खोलवरकर, शांताराम जाटु, कुमारी मोनिका नाथ, कुमारी माया काशी नाथ, रामा सरकार, संजीव कुमार, सुंदर सिंह और रमेश कुमार का नाम प्रमुख हैं जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने शानदार प्रदर्शन से कबड्डी में भारत का नाम रोशन किया हैं।
कबड्डी में कला व ताकत की समान रूप से जरूरत होती है। इसमें फुर्ती से आक्रमण करने के अलावा बड़ी चपलता से बचाव का अहम रोल होता है। इस लिहाज से इसमें कुश्ती की भी उम्दा अच्छाइयां नजर आती हैं। कबड्डी बेहद साधारण और कम खर्च का खेल है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके लिए न तो महंगे उपकरणों की जरूरत पड़ती है और न ही बड़े खेल क्षेत्र की। यही कारण है कि कबड्डी ग्रामीण भारत में आज भी बहुत लोकप्रिय है।
कबड्डी की संरचना आत्मरक्षा तथा आक्रमण के पद्धति को ध्यान में रखकर की गयी है। कबड्डी खेलने के लिए दो टीमें होती हैं, प्रत्येक टीम में 12 खिलाड़ी होते हैं। लेकिन इसमें से छह या सात को ही एक बार कोर्ट (पाले) पर जाने की अनुमति होती है। पांच खिलाड़ी रिजर्व होते हैं। खिलाड़ियों का चयन उम्र और वजन के आधार पर किया जाता हैं।
खेल के मैदान को 12.50 मीटर × 10 मीटर की एक सीमा रेखा से दो भागों मे बांट दिया जाता है। खेल के नियमानुसार टॉस जीतने वाली टीम के खिलाड़ी को विरोधी खेमे में एक ही सांस में कबड्डी.. कबड्डी.. कबड्डी.. बोलते हुए जाना होता है, और उनके खिलाड़ी को छुकर आना होता है। अगर खिलाड़ी छुकर वापस आने में सफल होता है तो उसकी टीम को अंक मिलता है साथ ही वह जिस खिलाड़ी को छूकर आता है, वह खेल से बाहर हो जाता है। विरोधी टीम का यह प्रयास होता है कि वह आने वाले खिलाड़ी को पकड़े और उसे वापस तब तक न जाने दे जब तक कि वह दूसरी सांस न ले ले। यदि खिलाड़ी एक ही सांस में कबड्डी बोलता हुआ अपने कोर्ट में नहीं आ पाता तो उसे खेल से बाहर होना पड़ता है।
इस तरह दोनों टीमें एक के बाद एक अपने खिलाड़ियों को एक दूसरे के कोर्ट में भेजती हैं। यदि खिलाड़ी खेल के दौरान तय सीमा रेखा से बाहर चला जाता है या उसके शरीर का कोई भी भाग सीमारेखा से छु जाता है तो इस अवस्था में भी उस खिलाड़ी को खेल से बाहर होना पड़ता है।
भारत में कबड्डी मुख्य रूप से 3 प्रकार से खेला जाता है- सरजीवनी, जेमीनी और अमर।
सरजीवनी
इस प्रकार के कबड्डी खेल भारतीय कबड्डी संघ के अंर्तगत आते हैं, जिनके नियम भी संघ ही निर्धारित करता है। इस खेल के नियम के अनुसार पहली टीम का खिलाड़ी अगर दूसरे टीम के खिलाड़ी को बाहर करता है, तो पहली टीम का बाहर हुआ खिलाड़ी टीम में फिर से खेलने के लिए आ जाता है।
जेमीनी
इस प्रकार के खेल में जब तक पूरे खिलाड़ी या टीम बाहर नहीं हो जाती, तब तक यह खेल चलता रहता है। इस तरह के खेल में समय का बंधन नहीं होता।
अमर
कबड्डी के इस प्रकार के खेल में अगर किसी खिलाड़ी को विरोधी टीम के खिलाड़ी द्वारा छु लिया जाता है तो वह खिलाड़ी खेल से बाहर नहीं होता बल्कि विरोधी टीम को एक अंक मिल जाता है। इसमें समय निश्चित होता है, व ज्यादा अंक बनाने वाली टीम विजेता होती है। कबड्डी के इस प्रकार का खेल उत्तर भारत के पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में एक घेरे के रूप में खेला जाता है। इसे सर्कल कबड्डी या अमर कबड्डी कहते हैं।यदि इस खेल को बिना तय सीमा रेखा के खेला जाता है तो इस प्रकार के खेल को गुंगी कबड्डी कहते हैं।
कबड्डी के सुप्रसिद्ध खिलाड़ी
अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित कबड्डी खिलाड़ियों में बलविंदर सिंह फिढ़्ढू, सदानंद महादेव शेट्टी, शकुंतला पानघर खोलवरकर, शांताराम जाटु, कुमारी मोनिका नाथ, कुमारी माया काशी नाथ, रामा सरकार, संजीव कुमार, सुंदर सिंह और रमेश कुमार का नाम प्रमुख हैं जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने शानदार प्रदर्शन से कबड्डी में भारत का नाम रोशन किया हैं।
कबड्डी में कला व ताकत की समान रूप से जरूरत होती है। इसमें फुर्ती से आक्रमण करने के अलावा बड़ी चपलता से बचाव का अहम रोल होता है। इस लिहाज से इसमें कुश्ती की भी उम्दा अच्छाइयां नजर आती हैं। कबड्डी बेहद साधारण और कम खर्च का खेल है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके लिए न तो महंगे उपकरणों की जरूरत पड़ती है और न ही बड़े खेल क्षेत्र की। यही कारण है कि कबड्डी ग्रामीण भारत में आज भी बहुत लोकप्रिय है।
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