Saturday, August 14, 2010

उड़ी रे पतंग....

उड़ी  रे पतंग....
भारतीय खेलों की समृद्ध परंपरा में पतंग का विशिष्ट स्थान है। पतंग एक खेल के साथ ही एक पर्व भी है। मकर संक्रांति को 'पतंग पर्व' के रूप में भी मनाया जाता है। मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने के पीछे कुछ धार्मिक भाव भी प्रकट होता है। इस दिन सूर्य मकर रेखा से उत्तर की ओर आने लगता है। सूर्य के उत्तरायण होने की खुशी में पतंग उड़ा कर भगवान भास्कर का स्वागत किया जाता है साथ ही आंतरिक आनंद की अभिव्यक्ति भी होती है।
भगवान श्रीराम ने भी उड़ाई थी 'पतंग'
'पतंग' शब्द बहुत प्राचीन है। रामचरित मानस में महाकवि तुलसीदास ने ऐसे प्रसंगों का उल्लेख किया है, जब भगवान श्रीराम ने अपने भाईयों के साथ पतंग उड़ाई थी। इस संदर्भ में बाल काण्ड में उल्लेख मिलता है:
'राम इक दिन चंग उड़ाई।
इंद्रलोक में पहुंची जाई॥'

हालांकि,पतंग के संबंध में कोई विशेष लिखित जानकारी उपलब्ध नहीं है। सूर्य के लिए भी पतंग शब्द का प्रयोग हुआ है। पक्षियों को भी पतंग कहा जाता है। 'कीट-पतंगे' शब्द आज भी प्रयोग में है। संभव है इन्हीं शब्दों से वर्तमान पतंग का नामकरण किया गया हो। भारत के अलावा मलेशिया, जापान, चीन, थाईलैंड, वियतनाम आदि देशों में भी पतंग उड़ाई जाती है।
भारत के विभिन्न प्रांतों में पतंग उड़ाने की परंपरा है किन्तु उड़ाने का मौसम समान नहीं है।

पतंग उड़ाने की प्रक्रिया
पतंग उड़ाने की प्रक्रिया थोड़ी कठिन होती है। मंज्जा (धागा) को पकड़कर, पतंग को हवा में उड़ाया जाता है। पतंग जब हवा के साथ उड़ने लगती है तब ढील(मंज्जा को छोड़ते जाना) दिया जाता है। उड़ाते समय यह ध्यान दिया जाता है कि पतंग की मुंडी किस दिशा में है। उड़ाने वाला मंज्जा उंगली से खींचकर छोड़ता है जिसे ठोनकी कहते हैं। यह ठोनकी बार-बार देने से पतंग की मुंडी जिस दिशा में है वह उसी दिशा में जाने लगती है।

पेंच इसका महत्वपूर्ण पहलू है। पेंच जिसे अन्य शब्दों में मैच कह सकते हैं। जब कोई पतंग उड़ा रहा हो तथा कोई अन्य व्यक्ति भी पतंग उड़ा दे और उसकी मानसिकता पेंच लड़ाने की हुई तो दोनों व्यक्ति अपनी-अपनी पतंग को इस तरह से उड़ाते हैं कि एक दूसरे में फँस जाये। फँस जाना ही पेंच कहलाता है। दोनों व्यक्ति का यही प्रयास होता है कि वह नीचे से उठाकर विरोधी के पतंग को पेंच करें। पेंच लड़ते ही पतंग के अन्य प्रेमी भी सतर्क हो जाते हैं जिन्हें पतंग लूटने वाला कहा जाता है। ऐसे लोग यह नहीं देखते कि वह गली में हैं या सड़क पर। उनकी नजर केवल पतंग पर होती है। कई लोग लूटने के लिए सरगा (पेड़ की डाल) लेकर चलते हैं।

पतंग के कटने पर एक ही शब्द का संबोधन होता है, जिसे 'वई काटा' कहते हैं। जिसकी पतंग कटती है वह अपने हिस्से का मंज्जा शीघ्र ही खींचता है अन्यथा इसे भी बीच में कोई पकड़कर तोड़ लेता है।

कटी पतंग लूट ली जाती है या फिर लूट में फटने के बाद फेंक दी जाती है। किसी-किसी को पतंग के साथ आया हुआ मंज्जा भी मिल जाता है।

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