Saturday, August 14, 2010

गिल्ली-डंडा का ‘फंडा’


प्राचीन भारत में हर आयु के लोग अपने मनोरंजन के लिए विविध प्रकार के खेल खेला करते थे, जो मनोरंजन के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी लाभप्रद होते थे। ऐसे ही खेलों में प्रमुख खेल है- 'गिल्ली डंडा'। गिल्ली-डंडा खेलने के लिए बेलनाकार लकड़ी का बना एक फुट का डंडा और पांच इंच लम्बी गुल्ली की जरूरत होती है।

गिल्ली-डंडा खेलने के नियम
इस खेल में खिलाड़ियों की संख्या मायने नहीं रखती, दो खिलाड़ी भी खेल सकते हैं और दस खिलाड़ी भी। गिल्ली-डंडा खेलने से पहले मैदान के किसी भी भाग में एक छेद तैयार कर दिया जाता है, जो देखने में परंपरागत नाव की तरह प्रतीत होता है। यह छेद गिल्ली से छोटा होता है लेकिन जैसे-जैसे खेल आगे बढ़ता है छेद बड़ा होता चला जाता है।

इसमें सबसे पहले एक टीम का खिलाड़ी बेलनाकार डंडे से गिल्ली को पहले से तैयार छिद्र में रखकर हवा में मारता है। यदि विरोधी टीम का खिलाड़ी गिल्ली को पकड़ लेता है तो मारने वाले खिलाड़ी को खेल से बाहर (ऑउट) मान लिया जाता है।

जब गिल्ली मैदान पर गिरकर स्थिर हो जाता है तो विरोधी टीम का क्षेत्ररक्षक गिल्ली को उठाकर डंडे पर मारता है। इसके लिए क्षेत्ररक्षक को सिर्फ एक ही मौका दिया जाता है। क्षेत्ररक्षक यदि गिल्ली को डंडे पर मारने में सफल हो जाता है तो गिल्ली मारने वाला खिलाड़ी खेल से बाहर हो जाता है।

जब क्षेत्ररक्षक गिल्ली को डंडे पर मारने में सफल नहीं हो पाता तो स्ट्राईकर अर्थात डन्डे से गुल्ली को उड़ाने वाले खिलाड़ी को अंक प्रदान किया जाता है तथा वह दूसरी बार गिल्ली को मारने के लिए तैयार हो जाता है। स्ट्राइकर यदि गिल्ली को मारने में तीन बार असफल होता है तो उसे खेल से बाहर कर दिया जाता है। जो टीम ज्यादा अंक अर्जित करती है उस टीम को विजेता घोषित कर दिया जाता है।

गिल्ली-डंडा का खेल कई प्रकार से खेला जाता है। सामान्य रूप से खेले जाने वाले खेल में स्ट्राइकर गिल्ली को दो बार मारता है। पहली बार जमीन पर रखकर और दूसरी बार गिल्ली को हवा में उछालकर। खेल के कुछ प्रकारों में स्ट्राइकर द्वारा गिल्ली मारने के बाद गिल्ली के मारे गये स्थान से उसके गिरने वाले स्थान तक की दूरी पर अंक निर्धारित होता है। स्ट्राइकर एक बार में गिल्ली को हवा में जितनी बार मारेगा उसके अंक दोगुने हो जाएंगे।

गिल्ली-डंडा भारत के प्राचीनतम खेलों में प्रमुख खेल है। भारत में इस खेल को विविध नामों से जाना जाता है- बांग्ला में गुल्ली-डंडा को 'दंग्गुली', कन्नड़ में ‘चिन्नी-दंदु’, मलयालम में ‘कुत्तियुम-कोलम, मराठी में विति-दंदु, तमिल में कित्ती-पुल्लू, तेलुगु में बिल्लम-गोडू कहते हैं। यह खेल मुख्य रूप से भारत, दक्षिण यूरोप और दक्षिण एशिया में खेला जाता है। भारत के उत्तर प्रदेश और पंजाब प्रांत में गिल्ली-डंडा कॉफी लोकप्रिय खेल है। गिल्ली-डंडा के कुछ प्रसिद्ध भारतीय खिलाड़ियों में दीपाली गोड़, वरूण, सोमेंद्र कुमार, अजय कौशिक, रोहित मिश्रा, विजय चौधरी, विवेक बरनवाल, उपेन्द्र कुमार, सत्येंद्र कुमार और संदीप प्रकाश प्रमुख हैं।

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