खेलों की दुनिया में भारत को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने में हॉकी का बहुत बड़ा योगदान रहा है। हॉकी में भारत न सिर्फ विश्वविजेता रहा है बल्कि विश्व ओलिम्पक में लगातार 6 बार स्वर्ण पदक जीतने का भी विश्व रिकार्ड बनाया है।
आधुनिक स्तर पर खेले जाने वाले इस खेल का जन्म उन्नीसवीं शताब्दी में इंग्लैंड में हुआ। तब हॉकी इंग्लैंड के पब्लिक स्कूलों में खेला जाता था। उस समय इस खेल में गेंद या फिर गेंद के गोल तख्त को डंडे से मारकर विरोधी खेमे केगोल या पाले में डाला जाता था। बाद में इस खेल में चमड़े की गेंद और एक विशेष आकार वाले लकड़ी के डंडे का प्रयोग होने लगा।
हॉकी की अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता का शुभारम्भ सर्वप्रथम सन्1895 में हुआ जिसमें आयरलैंड ने वेल्स को शून्य के मुकाबले तीन गोल से हराया था। इस खेल से संबंधित अंतरराष्ट्रीय नियमों का गठन भी 1895 में ही हुआ जिसका सर्वप्रथम प्रयोग सन् 1908 में लंदन में आयोजित ओलंपिक खेलों के दौरान हुआ।1924 में अंतरराष्ट्रीय हॉकी संघ की स्थापना पेरिस में की गयी।1970 के दशक से हॉकी में कृत्रिम घासयुक्त मैदान का प्रयोग किया जाने लगा। आज विभिन्न प्रकार की राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में कृत्रिम घास के मैदान का प्रयोग किया जाता है।
आधुनिक स्तर पर खेले जाने वाले इस खेल का जन्म उन्नीसवीं शताब्दी में इंग्लैंड में हुआ। तब हॉकी इंग्लैंड के पब्लिक स्कूलों में खेला जाता था। उस समय इस खेल में गेंद या फिर गेंद के गोल तख्त को डंडे से मारकर विरोधी खेमे केगोल या पाले में डाला जाता था। बाद में इस खेल में चमड़े की गेंद और एक विशेष आकार वाले लकड़ी के डंडे का प्रयोग होने लगा।
हॉकी की अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता का शुभारम्भ सर्वप्रथम सन्1895 में हुआ जिसमें आयरलैंड ने वेल्स को शून्य के मुकाबले तीन गोल से हराया था। इस खेल से संबंधित अंतरराष्ट्रीय नियमों का गठन भी 1895 में ही हुआ जिसका सर्वप्रथम प्रयोग सन् 1908 में लंदन में आयोजित ओलंपिक खेलों के दौरान हुआ।1924 में अंतरराष्ट्रीय हॉकी संघ की स्थापना पेरिस में की गयी।1970 के दशक से हॉकी में कृत्रिम घासयुक्त मैदान का प्रयोग किया जाने लगा। आज विभिन्न प्रकार की राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में कृत्रिम घास के मैदान का प्रयोग किया जाता है।

भारत में हॉकीः विरासत और हकीकत
हॉकी हमारे देश का राष्ट्रीय खेल है। सर्वप्रथम सन् 1885 में राष्ट्रीय हॉकी को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पहले हॉकी क्लब की स्थापना कोलकाता में की गई। ओलिम्पक खेलों में भारतीय हॉकी का वर्चस्व रहा है। ओलिम्पक खेलों में भारतीय हॉकी का प्रथम प्रवेश सन् 1928 में हुआ जिसमें भारत ने बिना एक भी गोल खाये ओलम्पिक में अपना पहला स्वर्ण पदक जीता। इस जीत में हॉकी के महान भारतीय खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद का शानदार प्रदर्शन रहा। मेजर ध्यानचंद को “हॉकी का जादूगर”कहा जाता था।
उन्होंने सन् 1928 से 1956 तक भारतीय हॉकी टीम में एक खिलाड़ी तथा कप्तान के रूप में बेहतरीन प्रदर्शन किया। उस दौर की हॉकी को ‘भारतीय हॉकी का स्वर्ण युग’कहा जाता है। इस दौरान इनके बेहतरीन खेल की बदौलत भारत ने लगातार 6 ओलिम्पक स्वर्ण पदक और 24 मैच जीते।इन मैचों में भारत की तरफ से 178 गोल हुए थे और विरोधी टीम द्वारा केवल 7 गोल किये गये। किसी देश के लिए इससे बड़ी गौरव की बात और क्या हो सकती है?
हॉकी के इस स्वर्णिम काल में भारत ने अपने दमदार खेल से पूरे विश्व का सम्मान पाया और खिलाड़ियों ने विश्व पटल पर देश का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया। मेजर ध्यानचंद के अलावा जिन खिलाड़ियों ने अपने खेल से देश का नाम रोशन किया उनमें लगभग तीन दशकों तक अपना योगदान देने वाले बलबीर सिंह का नाम भी प्रमुख है। यह सिर्फ संयोग ही है कि इस नाम के चार और खिलाड़ियों ने भी भारतीय टीम में अपनी जगह बनायी। भारतीय हॉकी का यह स्वर्ण युग 1960 के रोम ओलिम्पक में खत्म हुआ जब फाइनल मैच में पाकिस्तान ने भारत को हरा दिया। भारतीय टीम द्वारा बनाये गये इस ओलिम्पक रिकार्ड को तोड़ने की बात तो दूर अभी तक कोई भी देश इसके आस-पास भी नहीं पहुंचा है।
उन्होंने सन् 1928 से 1956 तक भारतीय हॉकी टीम में एक खिलाड़ी तथा कप्तान के रूप में बेहतरीन प्रदर्शन किया। उस दौर की हॉकी को ‘भारतीय हॉकी का स्वर्ण युग’कहा जाता है। इस दौरान इनके बेहतरीन खेल की बदौलत भारत ने लगातार 6 ओलिम्पक स्वर्ण पदक और 24 मैच जीते।इन मैचों में भारत की तरफ से 178 गोल हुए थे और विरोधी टीम द्वारा केवल 7 गोल किये गये। किसी देश के लिए इससे बड़ी गौरव की बात और क्या हो सकती है?
हॉकी के इस स्वर्णिम काल में भारत ने अपने दमदार खेल से पूरे विश्व का सम्मान पाया और खिलाड़ियों ने विश्व पटल पर देश का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया। मेजर ध्यानचंद के अलावा जिन खिलाड़ियों ने अपने खेल से देश का नाम रोशन किया उनमें लगभग तीन दशकों तक अपना योगदान देने वाले बलबीर सिंह का नाम भी प्रमुख है। यह सिर्फ संयोग ही है कि इस नाम के चार और खिलाड़ियों ने भी भारतीय टीम में अपनी जगह बनायी। भारतीय हॉकी का यह स्वर्ण युग 1960 के रोम ओलिम्पक में खत्म हुआ जब फाइनल मैच में पाकिस्तान ने भारत को हरा दिया। भारतीय टीम द्वारा बनाये गये इस ओलिम्पक रिकार्ड को तोड़ने की बात तो दूर अभी तक कोई भी देश इसके आस-पास भी नहीं पहुंचा है।
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