‘टेबल टेनिस’ लॉन टेनिस के समान ही एक खेल है, जिसे दो या चार खिलाडी एक साथ खेल सकते हैं। इसमें एक छोटे टेबल को दो बराबर भागों में लाइन और छोटे से नेट से बांटते हैं। फिर एक छोटी सी गेंद को एक रैकेट जैसे बैट से एक दुसरे की तरफ मारते हैं। जब कोई खिलाडी गेंद नहीं मार पाता, तो विरोधी खिलाडी अंक हासिल करने में सफल हो जाता है। इस खेल में त्वरित प्रतिक्रिया की आवश्यकता होती है। नेट पर गेंद की तेज गतिविधियों को परखना पड़ता है।‘टेबल टेनिस फेडरेशन आफ इंडिया’ ने भारत को टेबल टेनिस को पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। प्रत्येक वर्ष भारत में विभिन्न प्रकार के टेबल टेनिस प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है जिससे भारतीय खिलाडियों अपनी क्षमता का प्रदर्शन करने का भरपूर मौका मिले। भारत में आज कई विश्व स्तर के टेबल टेनिस खिलाड़ी हैं जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर बेहतरीन प्रदर्शन कर देश का नाम ऊँचा किया। कमलेश मेहता, एस. रमन और चेतन बाबर जैसे नाम टेबल टेनिस की दुनिया में लंबे अर्से तक भारतीय तिरंगे की शान को आगे बढाते रहें हैं।
भारत में टेबल टेनिस का श्रीगणेश-
भारत में टेबल टेनिस की शुरुआत कोलकाता में सन् 1937 में टेबल टेनिस फेडरेशन आफॅ इंडिया की स्थापना के साथ हुई। धीरे धीरे भारत ने टेबल टेनिस के कई प्रतियोगिताओं में भाग लिया। १९५२ में होने वाले टेबल टेनिस की विश्व चैम्पियनशिप का आयोजन मुंबई में किया गया। जो भारत में टेबल टेनिस के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुआ । पहली बार विश्व चैंपियनशिप का आयोजन एशिया में हुआ था।
भारतीय टेबल टेनिस खिलाडियों को सन १९८८ में ओलंपिक खेलों में भाग लेने के लिए भेजा गया। १९८८ में ही टेबल टेनिस ओलंपिक में पहली बार शामिल किया गया था.। इसके बाद टेबल टेनिस की कई प्रतियोगिताओं में भारतीयों ने जीत दर्ज भी की जो उनके आत्मविश्वास को बढाने में मददगार साबित हुई। आज इसी विश्वास ने कई विश्वस्तरीय खिलाडियों को पैदा किया जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर बेहतरीन प्रदर्शन कर देश का नाम ऊँचा किया है । जब लोगों में इस खेल के प्रति रूची बढ़ी तो इसे एक व्यवसायिक खेल के रूप में बढावा मिला। भारतीय प्रबंधन इसका सफलतापूर्वक संचालन कर रहा है। भारत ने अब तक तीन वर्ल्ड चैम्पियनशिप की मेजबानी की है।
भारत में टेबल टेनिस का श्रीगणेश-
भारत में टेबल टेनिस की शुरुआत कोलकाता में सन् 1937 में टेबल टेनिस फेडरेशन आफॅ इंडिया की स्थापना के साथ हुई। धीरे धीरे भारत ने टेबल टेनिस के कई प्रतियोगिताओं में भाग लिया। १९५२ में होने वाले टेबल टेनिस की विश्व चैम्पियनशिप का आयोजन मुंबई में किया गया। जो भारत में टेबल टेनिस के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुआ । पहली बार विश्व चैंपियनशिप का आयोजन एशिया में हुआ था।
भारतीय टेबल टेनिस खिलाडियों को सन १९८८ में ओलंपिक खेलों में भाग लेने के लिए भेजा गया। १९८८ में ही टेबल टेनिस ओलंपिक में पहली बार शामिल किया गया था.। इसके बाद टेबल टेनिस की कई प्रतियोगिताओं में भारतीयों ने जीत दर्ज भी की जो उनके आत्मविश्वास को बढाने में मददगार साबित हुई। आज इसी विश्वास ने कई विश्वस्तरीय खिलाडियों को पैदा किया जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर बेहतरीन प्रदर्शन कर देश का नाम ऊँचा किया है । जब लोगों में इस खेल के प्रति रूची बढ़ी तो इसे एक व्यवसायिक खेल के रूप में बढावा मिला। भारतीय प्रबंधन इसका सफलतापूर्वक संचालन कर रहा है। भारत ने अब तक तीन वर्ल्ड चैम्पियनशिप की मेजबानी की है।

टेबल टेनिस का इतिहास
टेबल टेनिस के खेल को रायल टेनिस की श्रेणी में रखा जाता है। जिसका प्रयोग मध्यकाल के दौर में किया जाता था। 18वीं सदी में टेबल टेनिस को एक इनडोर गेम की तरह दक्षिण अफ्रिकी सेना के अधिकारियों द्वारा खेला जाता था। तब सिगार के बाक्स को ‘पैडल’ और वाइन की बोतल के कॉक को ‘गेंद’ के रूप में उपयोग किया जाता था। धीरे-धीरे यह खेल इंग्लैंड के लोगों द्वारा शौक के रूप में खेला जाने लगा। तब इसे पिंग-पांग, गोसिमा आदि कई नामों से जाना जाता था। 1898 में एक इंग्लिश स्पोटर्स कम्पनी 'जॉन एंड संन्स' ने पहला टेबल टेनिस सेट तैयार किया था।
आधुनिक समय में तकनीकी रूप से टेबल टेनिस में भी थोडा बदलाव आया है। आज रैकेट जैसे बैट या पैडल का प्रयोग किया जाता है, जिसमें वैल्यूम स्ट्रेच्ड हैंडल लगे होते हैं। खिलाडियों की सुविधाओं को देखते हुए रैकेट के साइज को भी कई वर्गो में बांटा गया है।
जैसे जैसे टेबल टेनिस का खेल ख्याति पाता गया लोगों में इसे अपनी संस्था से और इसके श्रेय को लेने की होड भी बढने लगी थी। 1901 तक तो दो समूह 'टेबल टेनिस एसोसिएशन' और 'पिंग पांग एसोसिएशन' आमने सामने खडे हो गये थे कि वो ही इसे अंतराष्ट्रीय स्तर पर पेश करेंगे। इस दौर के गर्म माहौल के बाद इस खेल की वजूद ही खतरे में पडने लगा था। लेकिन 1920 में टेबल टेनिस एक बार फिर लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहा। इसका श्रेय एक ब्रिटिश व्यक्ति आइवर मोन्टेग्यु को गया। 1926 में आइवर मोन्टेग्यु ने ‘पिंग पांग एसोसिएशन’ और ‘टेबल टेनिस एसोसिएशन’ को आपस में विलय कर एक नया संस्थान ''इंटरनेशनल टेबल टेनिस फेडरेशन''(आईटीटीएफ) बनाया। 7 दिसम्बर 1926 में निर्मित आईटीटीएफ के प्रथम चेयरमैन के रूप में आइवर मोन्टेग्यु को नियुक्त किया गया। अपने नियुक्ति के पांच दिन के अंतराल में ही टेबल टेनिस को अपना पहला रूल्स एंड गाइड को स्वीकृति मिली। इस नियमावली के आधार पर ही लन्दन में पहली प्रतियोगिता आयोजित की गई तथा इंग्लैंड ही पहला विश्व चैम्पियन बना।
आधुनिक समय में तकनीकी रूप से टेबल टेनिस में भी थोडा बदलाव आया है। आज रैकेट जैसे बैट या पैडल का प्रयोग किया जाता है, जिसमें वैल्यूम स्ट्रेच्ड हैंडल लगे होते हैं। खिलाडियों की सुविधाओं को देखते हुए रैकेट के साइज को भी कई वर्गो में बांटा गया है।
जैसे जैसे टेबल टेनिस का खेल ख्याति पाता गया लोगों में इसे अपनी संस्था से और इसके श्रेय को लेने की होड भी बढने लगी थी। 1901 तक तो दो समूह 'टेबल टेनिस एसोसिएशन' और 'पिंग पांग एसोसिएशन' आमने सामने खडे हो गये थे कि वो ही इसे अंतराष्ट्रीय स्तर पर पेश करेंगे। इस दौर के गर्म माहौल के बाद इस खेल की वजूद ही खतरे में पडने लगा था। लेकिन 1920 में टेबल टेनिस एक बार फिर लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहा। इसका श्रेय एक ब्रिटिश व्यक्ति आइवर मोन्टेग्यु को गया। 1926 में आइवर मोन्टेग्यु ने ‘पिंग पांग एसोसिएशन’ और ‘टेबल टेनिस एसोसिएशन’ को आपस में विलय कर एक नया संस्थान ''इंटरनेशनल टेबल टेनिस फेडरेशन''(आईटीटीएफ) बनाया। 7 दिसम्बर 1926 में निर्मित आईटीटीएफ के प्रथम चेयरमैन के रूप में आइवर मोन्टेग्यु को नियुक्त किया गया। अपने नियुक्ति के पांच दिन के अंतराल में ही टेबल टेनिस को अपना पहला रूल्स एंड गाइड को स्वीकृति मिली। इस नियमावली के आधार पर ही लन्दन में पहली प्रतियोगिता आयोजित की गई तथा इंग्लैंड ही पहला विश्व चैम्पियन बना।
No comments:
Post a Comment