नई दिल्ली,। पैरालिंपिक की भालाफेंक स्पर्धा के विश्व रिकॉर्डधारी देवेन्द्र
झाझरिया ने बांस की लकड़ी का भाला बनाकर शुरूआत की थी, जिसकी बदौलत वह सफलता के
शिखर पहुंचने में सफल रहे। पैरालिंपिक ओलंपिक में देश के पहले व्यक्तिगत स्वर्ण
विजेता बनने का रिकार्ड भी पद्मश्री से सम्मानित देवेन्द्र के नाम है।
अपने जीवन के संघंर्ष को
सामने रखते हुए देवेन्द्र झाझरिया ने आज पत्रकारों से बातचीत में कहा, ‘जब मैंने
खेलना शुरू किया था तो मेरे पास कोई भाला नहीं था। मैंने बांस की लकड़ी को भाला
बनाकर खेलना शुरू किया था। मैंने कभी भी पैरालिंपक खिलाड़ी की तरह नहीं अभ्यास
नहीं किया बल्कि हमेशा खुद को सामान्य खिलाड़ी माना। मैंने सामान्य खिलाड़ी की
श्रेणी में भी देश में पदक जीता है।’ दुर्घटना में अपना एक हाथ गंवाने वाले
राजस्थान के चूरू जिले के देवेन्द्र ने वर्ष 2002 में बुसान में आठवें फेस्पिक
एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता था। इसके एक वर्ष बाद उन्होंने ब्रिटिश ओपन में
59.2 मीटर भाला फेंककर नया विश्वरिकॉर्ड बनाया। साथ ही उन्होंने तिहरी कूद में
स्वर्ण पदक और शाट पुट में रजत पदक जीता था।
उल्लेखनीय है कि द्रेवेन्द्र
ने 2004 में एथेंस पैरालिंपिक में 62.15 मीटर भाला फेंककर अपने ही विश्व रिकॉर्ड
को पीछे छोड़ते हुए स्वर्ण पदक जीता था। वह पैरालिंपिक ओलंपिक में स्वर्ण पदक
जीतने वाले देश के पहले एथलीट हैं। उनका यह विश्व रिकॉर्ड अब भी कायम हैं।
देवेन्द्र पैरालिंपिक खेलों के राष्ट्रीय कोच और चयन समिति के सदस्य भी हैं।
देवेन्द्र की उपलब्धियों को देखते हुए राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने गुरुवार को
उन्हें 'पद्मश्री' से
सम्मानित किया।
हिन्दुस्थान समाचार/23.02.2012/आकाश।
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