Monday, August 23, 2010

मानव संसाधन मंत्रालय ने आनंद की नागरिकता पर उठाये सवाल




हैदराबाद। विश्व के शीर्ष भारतीय शतरंज खिलाड़ी विश्वनाथन आनंद की नागरिकता पर मानव संसाधन मंत्रालय ने सवाल खड़े कर दिए हैं। यह पूरा विवाद हैदराबाद विश्वविद्यालय द्वारा आनंद को मानद डॉक्टरेट उपाधि देने के फैसले के बाद हुआ है। दरअसल जब भी केंद्रीय विश्वविद्यालय किसी को मानद उपाधि देता है तो केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय इस मामले में फैसला लेता है।


मानव संसाधन मंत्रालय का कहना है कि आनंद विदेश में रहते हैं। इसलिए उनकी नागरिकता के बारे में विदेश मंत्रालय ही फैसला लेगा। जबकि आनंद की पत्नी अरूणा आनंद का कहना है कि विश्वनाथन आनंद अपनी ट्रैनिंग के लिए स्पेन जरूर जाते हैं लेकिन वो पक्के भारतीय है। अरूणा ने यूनिवर्सिटी को आनंद का भारतीय पासपोर्ट भी उपलब्ध कराया है।


यह हमारे देश का दुर्भाग्य ही है कि पूरे विश्व में भारत का नाम ऊँचा करने वाले आनंद की नागरिकता पर सवाल उठाया जा रहा है। आनंद की नागरिकता पर किसी भी तरह का सवाल उठाना उनका अपमान करने जैसा ही है।

Monday, August 16, 2010

घपलों-घोटालों का खेल बना ‘राष्ट्रमंडल खेल’


नई दिल्ली। भारत में सन् 1982 में हुए एशियाई देशों के खेलों "एशियाड 82" के पश्चात अब दूसरी बार 19वें राष्ट्रमंडल खेलों के रूप में कोई इतना बड़ा आयोजन देश में होने जा रहा है। जिनमें 71 देशों के 8 हजार खिलाड़ी व अधिकारी, 17 विभिन्न प्रकार के खेलों में भाग लेंगे।


इन खेलों की मेजबानी के साथ देश का सम्मान भी जुड़ा हुआ है। लेकिन राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों में लापरवाही, पैसों की बर्बादी, भ्रष्टाचार और कथित घोटालों के तथ्य उजागर होने के बाद देश की अस्मिता एवं सम्मान दोनों दांव पर लग चुके हैं। यह जितना निराशाजनक है उतना ही क्षुब्ध करने वाला भी है। समय रहते किसी ने न तो इन बातों पर गौर किया कि राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियां निर्धारित समय सीमा में पूरी हों और न ही खेलों के सफल आयोजन के लिए कोई समुचित कार्ययोजना बनाई जिससे खेलों की आड़ में होने वाले घोटालों का पर्दाफाश हो सके।


अब जब इन खेलों के शुरू होने में केवल 56 दिन बचे हैं तो आइए नजर डालते हैं कि इसकी मेजबानी के लिए हम कितने तैयार हैं:-


खेलों के आयोजन के लिए अभी तक सारे स्टेडियम ही तैयार नहीं हुए हैं। तैराकी स्पर्धा के लिए तैयार किए गये एस.पी. मुखर्जी स्टेडियम के पहले ही ट्रायल में पूल के टाइल्स निकल जाने की वजह से दो तैराक घायल हो चुकें हैं।


इस पूल को तैयार करने में 377 करोड़ रूपये लगे थे। दिल्ली सरकार ने 770 करोड़ रूपये के साथ इस आयोजन के लिए काम शुरू किया था लेकिन अभी तक 11 हजार करोड़ रूपये खर्च हो चुके हैं।

अब बात करते हैं राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान पूरे आयोजन का केंद्र रहने वाले जवाहरलाल नेहरु स्टेडियम की, जिसमें उद्घाटन समारोह से लेकर एथलेटिक्स, लॉन बाउल्स और भारोत्तोलन जैसी स्पर्धाएं आयोजित की जाएँगी।

नए सिरे से बने इस स्टेडियम का उद्घाटन 27 जुलाई को किया गया, लेकिन यह तय सीमा से 6 महीने बाद हुआ है। यहाँ अब भी काम जारी है, जिसका सीधा मतलब है कि उद्घाटन करना भी महज रस्म अदायगी है क्योंकि अभी इस स्टेडियम में कई चीजों पर काम चल रहा है।

इसके अलावा आर.के खन्ना स्टेडियम में बनने वाली सिंथेटिक सर्फेस के काम में भी भ्रष्टाचार का मामला सामने आया है। आर.के खन्ना स्टेडियम में बने 14 कोर्ट्स का सिंथेटिक सर्फेस का काम ऑस्ट्रेलियाई कंपनी रिबाउंट एस को दिया गया, जिसमें कॉमनवेल्थ ऑर्गनाइजिंग कमेटी के कोषाध्यक्ष अनिल खन्ना का बेटा आदित्य खन्ना सीईओ है।

खिलाड़ियों के आवास हेतु बनाए जा रहे राष्ट्रमंडल खेल गाँव का काम भी पूरा नहीं हुआ है। दिल्ली विकास प्राधिकरण ने यहाँ बन रहे 1100 फ्लैट को सुसज्जित करने के लिए भारतीय पर्यटन विकास निगम को सौंपा था। यहाँ अब तक काम पूरा हो जाना चाहिए था लेकिन अभी तक यह काम भी अधूरा पड़ा है।

राजधानी में इतने बड़े आयोजन के लिए दिल्ली नगर निगम सीधे तौर पर राष्ट्रकुल खेल के प्रोजेक्ट से जुड़ा ही नहीं है। डीएमसी के जिम्मे सड़कों के निर्माण से लेकर फुटपाथ, लैंडस्कैपिंग और वाहनों की पार्किंग व्यवस्था सहित साफ-सफाई से जुड़े काम थे, जो अभी तक अधूरे हैं। सभी परियोजनाओं में से सिर्फ जवाहरलाल नेहरु स्टेडियम के पास 700 बसों के लिए पार्किंग व्यवस्था करने का काम एमसीडी ने तकरीबन पूरा कर लिया है।

आयोजन पर अनुमानित व्यय
मात्र बारह दिन के राष्ट्रमंडल खेलों के इस आयोजन पर शुरु में कुल 63,284 करोड़ रुपयों के खर्च होने का अनुमान लगाया गया था। इसमें दिल्ली सरकार का अपना योगदान 16,580 करोड़ रुपयों का था। लेकिन ताजा आकलन के अनुसार सभी परियोजनाओं को पूरा करने में 80 हजार करोड़ से भी ज्यादा के खर्च होने की उम्मीद है।

जानकारी के मुताबिक, खेलों की हाई-टेक सुरक्षा का ही ठेका एक कंपनी को 370 करोड़ रूपये में दिया गया है। किन्तु यह उस खर्च के अतिरिक्त होगा, जो सरकारी पुलिस, यातायात पुलिस और सुरक्षा बलों की तैनाती के रुप में होगा और सरकारी सुरक्षा एजेंसियां स्वयं विभिन्न उपकरणों की विशाल मात्रा में खरीदारी करेंगी।

खेलों में व्याप्त भ्रष्टाचार
राष्ट्रमंडल खेल देश के लिए जितना बड़ा आयोजन है उससे भी ज्यादा इन खेलों में घोटाले हुए हैं। आयोजन से जुड़ी 16 परियोजनाओं में केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) ने 2,500 करोड़ रुपए से अधिक की अनियमितिता का खुलासा किया है।

सीवीसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि राष्ट्रमंडल खेल गांव तरणताल, प्रशिक्षण हॉल और एथलेटिक्स ट्रैक सहित इन खेलों से जुड़ी 16 परियोजनाओं के दौरान भारी अनियमितिता बरती गई है।

इसके अलावा दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए), केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) द्वारा नेशनल स्टेडियम और एसपीएम तैराकी स्थल में किए गए पुनर्निमाण कार्य के दौरान भी धांधली की गई है।

इन परियोजनाओं में खेल संकुलों का उन्नयन और सड़कों को चौड़ा करने संबंधी परियोजनाएं शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि सीवीसी ने इस मामले में दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) सहित कुछ और एजेंसियों के अधिकारियों के विरुद्ध सीबीआई से जांच करने को कहा है।

एक ओर जहाँ केंद्रीय सतकर्ता आयोग ने अपनी रिपोर्ट में यह कहा है कि ज़्यादातर निर्माण कार्य में प्रक्रिया संबंधी उल्लंघन पाए गए हैं, तो दूसरी ओर एक अनजानी सी कंपनी को लाखों पाउंड देने का मामला भी तूल पकड़ रहा है। ताज़ा मामला लंदन की एक ऐसी कंपनी का है जिसे लाखों पाउंड दिए गए। एक निजी टीवी चैनल ने अपनी विशेष रिपोर्ट में इस कंपनी पर कई गंभीर सवाल उठाए हैं।

हालाँकि राष्ट्रमंडल खेलों की आयोजन समिति के महासचिव ललित भनोट का कहना है कि जो भी पैसे कंपनी के खाते में स्थानांतरित किए गए हैं, उसके लिए सभी प्रक्रियाओं का पालन किया गया।

भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद हड़बड़ी में बुलाए गए एक संवाददाता सम्मेलन में ललित भनोट ने कहा, "हमने रिज़र्व बैंक से अनुमति ली थी। कंपनी से सामान ख़रीदने के लिए जो भी प्रक्रिया का पालन करना था, हमने किया। हर चीज़ें पारदर्शी हैं।"

इनके अलावा राष्ट्रमंडल खेलों के लिए खरीदी गई डीटीसी की बसों में भी भ्रष्टाचार का मामला सामने आया है। इन डीटीसी की बसों में हल्की क्वालिटी के सामानों का इस्तेमाल हुआ है। इस सिलसिले में सीबीआई ने सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ रोड ट्रांसपोर्ट यानी सीआईआरटी के तीन अधिकारियों और अशोक लेलैंड के दो नुमांइदों के खिलाफ मामला दर्ज किया है। इन पर आपराधिक साजिश रचने, धोखाधड़ी, जालसाजी और भ्रष्टाचार के मामलों में केस दर्ज किया जा चुका है।

उल्लेखनीय है कि राजधानी दिल्ली की सड़कों पर 3000 लो फ्लोर बसें हैं। डीटीसी ने अशोक लेलैंड कंपनी को 5,000 सीएनजी बसों का ऑर्डर दिया था।

इन सब खुलासों के बाद देशवासियों के सामने एक ही प्रश्न है, कैसे रहेगी देश की शान, जिसको मिट्टी में मिलाने में कुछ नेताओं ने कोई कसर नहीं छोड़ी है।
वीएचवी। सुनील दूबे। खेल संवाददाता। 06 अगस्त, 2010

इतिहास पुरूष की ऐतिहासिक पारी को शत् शत् नमन


ग्वालियर। चौबीस फरवरी का दिन भारतीय क्रिकेट प्रेमियों और क्रिकेट जगत में लंबे समय तक याद रखा जायगा। ग्वालियर के कैप्टन रुप सिंह स्टेडियम में इसी दिन क्रिकेट के सुपरमैन सचिन रमेश तेंदुलकर ने भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच खेले गये दूसरे एकदिवसीय मैच में धुआंधार पारी खेलते हुए सिर्फ 147 गेंदों में 25 चौकों, 3 गगनचुम्बी छक्कों की मदद से नाबाद 200 रन बनाए।




एकदिवसीय क्रिकेट के इतिहास के 40 साल और 2,961 मैचों के बाद कोई खिलाड़ी पहला दोहरा शतक लगाने में कामयाब हुआ है। यह शतक उस खिलाड़ी ने लगाया जो पिछले 22 वर्षों से लगातार क्रिकेट खेल रहा है। आज भारत सहित पूरे विश्व क्रिकेट में सिर्फ तेंदुलकर के धुआंधार 200 रनों की पारी की चर्चा है। इनके एकदिवसीय रिकॉर्ड का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके एकदिवसीय रिकॉर्ड टीम के शेष दस खिलाड़ियों के कुल रिकॉर्डो से श्रेष्ठ हैं। टीम के बाकि खिलाड़ी भी मिलकर सचिन की बराबरी नहीं कर पाए हैं।..




सचिन ने 200 रन की नाबाद पारी 36 साल 306 दिन की उम्र में खेली है। जबकि पाकिस्तान के सईद अनवर ने जब 194 रन बनाए थे, तो उनकी उम्र 29 साल थी। स्पष्ट है कि सचिन की उम्र भले ही बढ़ती जा रही है, लेकिन इसका असर उनके खेल पर नहीं पड़ रहा है। अनवर ने सचिन कि इस पारी कि तारीफ करते हुए कहा, "मैंने भारत के खिलाफ 194 रन बनाकर सर्वाधिक व्यक्तिगत रन का विश्व रिकॉर्ड बनाया था। मेरे इस रिकॉर्ड को तोड़ने की क्षमता सचिन में ही थी। मुझे कोई गम नहीं है क्योंकि मेरा रिकॉर्ड सचिन तेंडुलकर ने तोड़ा है जो निर्विवाद रूप से विश्व के सबसे चहेते क्रिकेटर हैं।"


कभी सचिन को सपने में देखने वाले पूर्व ऑस्ट्रेलियाई फिरकी गेंदबाज़ शेन वार्न ने कहा कि शुक्र है कि वे सचिन को गेंदबाजी नहीं कर रहे थे। वार्न ने कहा कि जैसे ही सचिन 190 पर पहुंचे तो टीवी देखते हुए मैं चिल्ला पड़ा ‘कमऑन सचिन, तुम डबल सेंचुरी का नया रिकॉर्ड बना सकते हो।


कभी सचिन के जोड़ीदार रहे भारतीय क्रिकेट के सबसे सफल कप्तान सौरव गांगुली ने सचिन के इस दोहरे शतक को बेहद शानदार पारी करार दिया। उन्होंने कहा कि सचिन दुनियां के सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटर हैं। रवि शास्त्री ने उनकों रन मशीन कहकर पुकारा है, तो वहीं बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन ने सचिन के बारें में कहा कि मास्टर ब्लास्टर साल दर साल अपने प्रदर्शन से चौकाते रहे हैं। टॉप ग्रेड के उनके खेल के कारण ही वे सफलता के शीर्ष पर बने हुए हैं। उनकी उपलब्धियां अद्भुत हैं। इन सारी खूबियों के बावजूद वे जमीन से जुड़े व्यक्ति हैं। हर कोई इस दोहरे शतक की पारी को देखकर गदगद है।

सचिन रमेश तेंदुलकर : क्रिकेट जीवन का एक सफल साधक
सचिन को क्रिकेट की ओर मोड़ने का श्रेय उनके बड़े भाई अजीत तेंदुलकर को जाता है। अजीत ने ही उन्हें खेल से जुड़ने की प्रेरणा दी। अगर अजीत ऐसा नहीं करते तो शायद क्रिकेट जगत को सचिन जैसा हीरा नहीं मिल पाता। राजापुर सारस्वत ब्राह्मण कुल में जन्में सचिन के दो बड़े भाई नितिन और अजीत एवं एक बहन हैं।



सचिन के पिता रमेश तेंदुलकर, मराठी उपन्यास के लेखक थे। सचिन ने अपने पिता से महानता के साथ जमीन से जुड़े रहने की कला सीखी। इतने प्रसिद्ध होने के बाद भी सचिन एक विनम्र और शालीन व्यक्ति हैं। यही बात उन्हें महान बनाती है। सचिन का सपना एक तेज गेंदबाज़ बनने का था। इसके लिए वे चैन्नई स्थित एमआरएफ पेस अकादमी ट्रायल देने भी पहुंचे थे। पर अफसोस वे अपने छोटे कद से मात खा गए।


अभ्यास करते समय जब सचिन थक जाते थे उनके कोच रमाकांत आचरेकर एक रुपए का सिक्का स्टंप्स पर रखकर कहते थे, जो सचिन का विकेट लेगा ये सिक्का उसका, और यदि सचिन आउट नहीं हुआ तो ये एक रुपया सचिन का। सचिन ने आज भी वो तेरह सिक्के संभाले कर रखे हैं। साल 1988 में एक स्कूल टूर्नामेंट में सचिन ने अपने परम मित्र विनोद कांबली के साथ मिलकर नया रिकार्ड बनाया था। कांबली के साथ 664 रन की रिकार्ड साझेदारी से सचिन ने भारतीय क्रिकेट में पहला धमाका किया।

लोकप्रिय खेलों की रोमांचक शब्दावली-"फुटबाल और हॉकी-"


फुटबाल दुनिया में सबसे ज्यादा खेले जाने वाले लोकप्रिय खेलों में शुमार है। जब यह खेला जाता है तो दर्शकों की इस खेल के प्रति दिवानगी देखते ही बनती है। इसको खेलना जितना मनोरंजक है, उतना ही इसमें प्रयुक्त होने वाली शब्दावली रोमांचित करने वाली है, तो आइये देखते हैं क्या है इस खेल की शब्दावली-

मिड फील्ड, सेंटर, स्ट्राइकर , पास, बैक पास, गोली, कार्नर, फारवर्ड, पेनल्टी, किक, डायरेक्ट किक, इनडायरेक्ट किक, फ्री किक, ड्रिबल, एक्स्ट्रा टाइम, फाउल, गोल, रेफरी, लाइंसमैन, ऑफ साइड, सीजर्स किक, बनाना किक, विंगर, स्वीपर, बैक, थ्रो इन, वाली, टच लाइन, सेंड ऑफ, नेट, बार्स, टाईब्रेकर, सडेन डेथ, कार्नर फ्लैग, कार्नर किक, फिस्ट, फर्स्ट हाफ, सेकेण्ड हाफ, लॉब, टैकेल, स्लाइडिंग टेकेल, ऑफ साइड, हैट्रिक, हैंडबाल, चिप, फेयर चार्ज, फार पोस्ट, बुकिंग, क्रास, किक आफ, गोल किक, मार्किंग, बाल पास, थ्रू वाल, टोटल फुटबाल, गोल्डन गोल, आदि।

प्रमुख शब्दों का विस्तार-
थ्रो इन- जब गेंद भूमि पर अथवा हवा में स्पर्श रेखा को पार करके पारित रेखा स्थल से अन्त में गेंद स्पर्श करने वाले खिलाड़ी के विपक्षी दल के किसी खिलाड़ी द्वारा किसी दिशा में अन्त:क्षेपित की जाए, तो इसे थ्रो इन कहते हैं।

ऑफ साइड- यदि कोई खिलाड़ी गेंद की अपेक्षा स्वयं विपक्षी गोल रेखा के निकटतम और अपनी ही टीम के खिलाड़ी को सीधा पास दे अथवा चला जाए तो उसे ऑफ साइड कहते हैं।

पेनल्टी किक- नियम विरूध्द खेलने पर किक करने का एक अवसर।

गोल्डन गोल- निर्धारित समय में मैच बराबर न होने की दशा में अतिरिक्त समय में बने गोल को गोल्डन गोल कहा जाता है।

हॉकी-
गोली, राइट बैक, लेफ्ट बैक, आउट साइड राइट, इनसाइड राइट, सेंटर फारवर्ड, इनसाइड लेफ्ट, आउट साइड लेफ्ट, सेटर हाफ, सेंटर लाइन , कार्नर, पेनल्टी स्ट्रोक, पेनल्टी कार्नर, फ्लिक, स्कूप, स्टिक, अम्पायर, लाइन्समैन, हाफ वाली, इनफ्रिंजमेंट, साइड लाइन, टाई ब्रेकर, सडेन डेथ, हैट्रिक, अण्डर कटिंग, सर्किल, बुली, रोड आन, पुश इन, शूटिंग सर्किल।

प्रमुख शब्दों के विस्तार-
बुली- खेल प्रारम्भ होने के समय हॉकी बाल को मारना बुली कहलाता है।

फ्री हिट- जब विपक्षी टीम गेंद को स्वतंत्र रूप से मारती है तो उसे फ्री हिट कहते हैं।

ड्रिब्लिंग- यह हॉकी गेंद को नियंत्रित करने की एक कला है।

जैब एण्ड लंग- गेंद को देना या बाहर करना 'जैब एण्ड लंग' कहलाता है।

पेनाल्टी कॉर्नर- नियम का उल्लंघन करने पर गोल करने का एक अवसर देना 'पेनाल्टी कार्नर' कहलाता है।

पेनाल्टी स्ट्रोक- यह गोल करने का एक आसान अवसर है।

डी- यह अर्ध्दवृत्ताकार एक रेखा है, जो गोल पोस्ट को घेरे रहती है।

एस्ट्रोटर्फ- यह कृत्रिम घास का एक ऐसा मैदान है, जो आधुनिक तकनीक से लोहे के तार पर प्लास्टिक चढ़ाकर बनायी गयी कृत्रिम घास से निर्मित होता है।

क्रिकेट के खेल से संबंधित शब्दावली -


किसी भी खेल को खेलने के पहले उस खेल के नियम और शब्दावली को जानलेना बहुत जरूरी होता है। वर्तमान समय में क्रिकेट का खेल काफी लोकप्रिय है तो आइये जानते हैं क्रिकेट के खेल से संबंधित शब्दावली जिनका इस खेल को खेलते समय अत्यधिक प्रयोग होता है -


क्रिकेट शब्दावली-
एशेज, रबर, वेल्स, बैट, डेड बॉल, एक्स्ट्रा , फाइन लेग, विकेट, विकेट कीपर, स्क्वायर लेग, गली, मिड आफ, मिड आन, मिड विकेट, बैट्समैन, बॉलर, फाइन लेग, शार्ट लेग, स्लिप्स, कवर, एक्स्ट्रा कवर, थर्डमैन, गुगली, आफ स्पिन, लेग स्पिन, चायनामैन, फ्लाइट, इन स्विंग, आउट स्विंग, रिवर्स स्विंग, बंपर, बीमर, फुल टॉस, शार्ट पिच, वाइड, नो बाल, ओवर, ओवर द विकेट, राउंड द विकेट, मेडेन, वाइड बाल, हैंडल द बाल, हिट विकेट, प्लेड आन, रन आउट, स्टम्पड आउट, बोल्ड, कैच, कॉट, फालोऑन, थ्रो, ओवर थ्रो, पैड, प्रोटेक्शन गार्ड, हेलमेट, पिच, क्रीज, नाट आउट, सीम, शूटर, स्लाग ओवर, अम्पायर, इनिंग्स, ग्लब्स, कैप, बाउंडरी, ओवर बाउंडरी, फील्डर, लेग बिफोर विकेट, शार्ट रन आदि।

कुछ प्रमुख शब्दों का विस्तार-
लेग बिफोर विकेट या पगबाधा आउट- क्रिकेट के खेल में यदि गेंदबाज द्वारा फेंकी गई गेंद सीधी विकेट पर जा रही हो और बल्लेबाज ने उसे जाने या अनजाने में अपने पैरों या शरीर के किसी भी अन्य अंग से रोक लिया तो ऐसी स्थिति में अम्पायर बल्लेबाज को आउट करार दे सकता है। इस प्रक्रिया को ही लेग बिफोर विकेट या पगबाधा आउट कहते हैं।

क्लीन बोल्ड- जब गेंदबाज द्वारा फेंकी गई गेंद से विकेट के ऊपर रखी गिल्ली गिर जाए या विकेट उखड़ जाय तो उसे ''क्लीन बोल्ड'' कहते हैं।

वाइड बाल- यदि गेंदबाज गेंद को बल्लेबाज की पहुंच से दूर फेंकता है तो अम्पायर उसे वाइड बाल करार देता है। ''वाइड बाल'' से बल्लेबाजी कर रही टीम के स्कोर में एक रन का इजाफा होता है।

बाई- यदि कोई गेंद न तो 'नो बाल' हो और न ही 'वाइड बाल' और यदि वह बल्ले या बल्लेबाजी कर रहे व्यक्ति के शरीर को छुये बिना बहुत आगे निकल जाए तो इस स्थिति में बल्लेबाज जितने रन दौड़कर बनाता है उसे 'बाई' कहते हैं।

लेग बाई- 'बाई' की स्थिति में ही यदि गेंदबाज या विकेटकीपर को छुते हुए आगे निकल जाए तो इसके दौरान बल्लेबाज जो रन बनाता है, उसे 'लेग-बाई' कहते हैं।

रन आउट- जब बल्लेबाज रन लेने के लिए दौड़े और उसके क्रिज में पहुंचने से पहले यदि क्षेत्ररक्षक द्वारा गेंद को विकेट पर मार दिया जाता है तो बल्लेबाज रन आउट हो जाता है।

नो बाल- यदि कोई गेंदबाज गेंद फेंकते समय गेंद को 'थ्रो' करता हो या गेंदबाजी करते समय उसके अगले पैर का हिस्सा ''पॉपिंग क्रीज'' के पीछे न हो अथवा वह पिछले पैर को रिटर्न क्रीज पर या इसकी बढ़ाई गई लाइन के भीतर न रखता हो तो ऐसी गेंदो को अंपायर “नो बाल” करार देता है। 'नो बाल' के लिए बल्लेबाजी करने वाली टीम को एक अतिरिक्त रन प्रदान किया जाता है और इसकी गणना फेंके गए गेंदों की संख्या में नहीं की जाती है। आईसीसी के नये नियमों के अनुसार 'नो बाल' करार दी गई गेंद को बल्लेबाज हिट करके रन ले सकता है तथा वह ऐसी गेंद पर न कैच आउट, न स्टम्प्स और न ही बोल्ड आउट होता है।

बाउंसर-ऐसी गेंद जो बल्लेबाज के कंधे से ऊपर की ऊंचाई से निकलती हो, बाउंसर कहलाती है।

हिट-विकेट-यदि बल्लेबाज शॉट खेलते समय या पहले रन के लिए भागते समय विकेट को बल्ले या शरीर के किसी भी भाग से गिरा देता है, तो हिट विकेट आउट माना जाता है।

फालोऑन-फालोऑन का नियम सबसे पहले 1894 ई. में दक्षिण अफ्रीका और विक्टोरिया के बीच मैच में लागू हुआ। फालोऑन की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब कोई टीम टेस्ट मैचों में अपनी पहली पारी में इतना रन बना ले कि विपक्षी टीम अपनी बल्लेबाजी की प्रथम पारी में उस स्कोर से काफी कम रन बनाए, तो पहली टीम का कप्तान विपक्षी टीम को तत्काल दूसरी पारी खेलने के लिए कह सकता है। इसके लिए आवश्यक है कि 5 दिवसीय मैच में दूसरी टीम की रन संख्या पहली टीम की रन संख्या से कम से कम 200 रन कम हो तथा तीन या चार दिवसीय मैच में 150 रन से कम हो।

भारतीय संविधान में 'खेल'


भारतीय संविधान में खेलकूद राज्य का विषय है। भारतीय संविधान में वर्णित विषयों की सूची में संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूचियों में खेलकूद 'राज्य सूची' के अंतर्गत आता है। केन्द्र सरकार खेलकूद को बढ़ावा देने के लिए विविध कार्यक्रम चलाती है। केन्द्र सरकार यह कार्य निम्न प्रकार से करती है-
1. राष्ट्रीय खेल परिसंघों को उनके कामकाज के बारे में दिशा-निर्देश देकर।
2. प्रशिक्षण शिविर लगाने और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में टीमें भेजने के लिए वित्तीय सहायता देकर।
3. राज्यों की खेलकूद परिषदों को अनुदान देकर तथा विभिन्न खेलों के प्रशिक्षकों के लिए प्रशिक्षण संस्थान स्थापित कर।

महिला राष्ट्रीय खेल महोत्सव
भारत सरकार ने महिलाओं की खेल में समुचित भागीदारी सुनिश्चित करने के निमित्त महिला राष्ट्रीय खेल महोत्सव की शुरूआत सर्वप्रथम सन् 1975 ई. में की। वर्तमान समय में यह एक महत्वपूर्ण खेल गतिविधि बन गई है। महिला राष्ट्रीय खेल महोत्सव का आयोजन भारतीय खेल प्राधिकरण करता है। महिला राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताएं पहले निचले स्तर पर होती हैं, जिनका आयोजन खण्ड, जिला और राज्य स्तरों पर राज्यों द्वारा किया जाता है। इसके लिए वित्तीय सहायता भी प्रदान की जाती हैं, जो निम्न है -
1-राज्यस्तरीय प्रतियोगिता के लिए 10,000 रुपये तक।
2-प्रति विकास खण्ड प्रतियोगिता के लिए-1,000 रुपये।
3-जिलास्तरीय प्रतियोगिता के लिए 3,000 रुपये।

राष्ट्रीय कल्याण कोष
भारत ने खिलाड़ियों को सहायता प्रदान करने हेतु एक राष्ट्रीय कल्याण कोष की स्थापना की है। इस कोष की स्थापना सन् 1982 में की गई। इस कोष की स्थापना का उद्देश्य ऐसे विलक्षण प्रतिभाशाली महिला/पुरुष खिलाड़ियों को वित्तीय सहायता देना है, जो अब खेलों के क्षेत्र में नहीं रहे तथा वे संघर्ष एवं बदहाली में जीवन यापन कर रहे हैं।

कृत्रिम मैदान निर्माण योजना-
केन्द्र सरकार प्रत्येक वित्तीय वर्ष में सिंथेटिक एथलेटिक ट्रैक एवं कृत्रिम हॉकी एस्ट्रो-टर्फ बिछाने के लिए अनुदान देती है। इसके अंतर्गत राज्य सरकारों को कुल व्यय का 50 प्रतिशत सहायता के रूप में दिया जाता है। इस वित्तीय सहायता की अधिकतम राशि 50 लाख रुपये है। योजना का कार्यान्वयन भारतीय खेल प्राधिकरण के नाम से हो रहा है।

भारत में सिंथेटिक एथलेटिक ट्रैक के मैदान
भारत में उपलब्ध सिंथेटिक ट्रैक के मैदानों में निम्नलिखित मैदान शामिल हैं-
1. जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम, नई दिल्ली।
2. राष्ट्रीय खेल संस्थान, पटियाला।
3. साल्ट लेक स्टेडियम, कोलकाता।
4. मालाबार हिल्स, मुम्बई।
5. यूनिवर्सिटी स्टेडियम, तिरुअनंतपुरम।

खेलों के प्रोत्साहन हेतु सरकार की ''राष्ट्रीय खेल नीति''


भारत सरकार ने खेलकूद को प्रोत्साहित करने के लिए ''राष्ट्रीय खेल नीति'' का निर्माण किया है। 19 अगस्त, 1992 को घोषित राष्ट्रीय खेल नीति वर्ष १९८४ के राष्ट्रीय खेल नीति पर संकल्प का विस्तृत रूप है। इस खेल नीति को चार भागों में विभक्त किया गया है। पहले भाग में सम्पूर्ण देश में खेल का माहौल पैदा करने के लिए बल दिया गया है। दूसरे भाग में पूरे देश में खेल के विस्तार पर बल दिया गया है। तीसरे भाग में पूरे देश में खेलों के प्रतियोगी स्तरों में सुधार पर बल दिया गया है, जबकि चतुर्थ भाग में खेल प्रबन्धन पर प्रकाश डाला गया है।

राष्ट्रीय खेल नीति की कार्ययोजना के प्रारम्भिक भाग में वर्ष 1947 के पूर्व के अंग्रेजों द्वारा संरक्षित तीन खेलों क्रमश: क्रिकेट, फुटबाल एवं हॉकी की चर्चा है, इसके पश्चात् स्वतंत्रता के बाद के खेल परिदृश्य का उल्लेख किया गया है।

राष्ट्रीय खेल नीति में चीन का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है। नीति निर्माताओं ने चीन के विख्यात नेता माओत्से तुंग की एक उक्ति-'सेहत पहले, पढ़ाई बाद में' का भी उल्लेख किया है। खेल नीति में इस पर भी व्यापक प्रकाश डाला गया है कि किस प्रकार से खेलकूद रोजगार सृजन में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से योगदान देता है।

राष्ट्रीय खेल नीति-2001
11 सितंबर, 2001 को केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने '' राष्ट्रीय खेल नीति-2001'' को अपनी स्वीकृति प्रदान की। खेल नीति में खिलाड़ियों को प्रोत्साहन राशि प्रदान करने, खेलों को बढ़ावा देने के लिए निजी कॉर्पोरेट क्षेत्र की भागीदारी सुनिश्चित करने तथा महिला आदिवासियों व ग्रामीण युवाओं को बढ़ावा देने पर बल दिया गया है।

खेल नीति में खेलों के आधार को मजबूत करने, खेलों में उच्चतम प्रदर्शन को प्राप्त करने, संरचनात्मक विकास एवं सुधारीकरण, खेल महासंघों व अन्य सम्बन्धित निकायों को सहायता देने, खेलों में वैज्ञानिक प्रशिक्षण उपलब्ध कराने व आम जनता में जागरूकता पैदा करने पर भी बल दिया गया है।
खेल प्राधिकरण-
भारत में खेलों के विकास के लिए एक खेल प्राधिकरण है। इसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री एवं उपाध्यक्ष खेल मंत्री होते हैं। यह प्राधिकरण एक स्वायत्तशासी संकाय है। यह न केवल सरकारी अपितु निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्रों से खेल के सम्यक् विकास के लिए धन एकत्र करता है।

खेल प्राधिकरण में एक महानिदेशक एवं सचिव का पद है। इसके प्रथम महानिदेशक मेजर जनरल नरेन्द्र सिंह एवं सचिव ए.एस.तलवार बने। खेल प्राधिकरण के विभिन्न सदस्यों में केन्द्रीय वित्त मंत्री, विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री, गृह मंत्री, रेलवे मंत्री, संचार मंत्री, आवास एवं निर्माण मंत्री, सूचना एवं प्रसारण मंत्री, शिक्षा मंत्री, उद्योग एवं आवास मंत्री शामिल होते हैं।
प्राधिकरण में वे लोग भी सम्मिलित होते हैं, जो खेल के विकास में उल्लेखनीय योगदान देते हैं, ऐसे तीन व्यक्तियों को इसका सदस्य मनोनीत किया जाता है।

प्राधिकरण के अन्य सदस्य दिल्ली के उपराज्यपाल, ओलम्पिक परिषद (भारत) के अध्यक्ष, तीन सांसद, उद्योग एवं वाणिज्य मंडल का एक प्रतिनिधि व तीन उच्च कोटि के खिलाड़ी होते हैं।
खेल प्राधिकरण केन्द्र सरकार के खेल विभाग के दिशा-निर्देशन में कार्य करता है। इसका मुख्यालय जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, नई दिल्ली में है।

क्रिकेट का आधुनिक संस्करण-''टी-20 क्रिकेट''


''टी-20 क्रिकेट'' क्रिकेट का आधुनिक संस्करण है। क्रिकेट का यह छोटा संस्करण कम समय में ही काफी लोकप्रिय हो चुका है। क्रिकेट के इस प्रारूप में प्रत्येक टीम को 20 ओवर खेलने होते हैं। क्षेत्ररक्षण कर रही टीम के प्रत्येक गेंदबाज को चार-चार ओवर फेंकने पड़ते हैं, बाकी नियम एकदिवसीय मैचों की तरह ही होते हैं। टी-20 क्रिकेट के इतिहास में पहला अंतरराष्ट्रीय मैच 17 फरवरी, 2005 को आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के मध्य खेला गया था। इस मैच में आस्ट्रेलिया ने न्यूजीलैंड को 44 रनों से हरा दिया था।


भारत ने अपना पहला टी-20 क्रिकेट मैच 1 दिसम्बर 2006 को जोहान्सबर्ग में दक्षिण अफ्रीका के विरूध्द खेला था। इस मैच में भारत 6 विकेट से विजयी रहा था। दक्षिण अफ्रीकी टीम ने पहले खेलते हुए निर्धारित 20 ओवरों में 9 विकेट पर 126 रन बनाए, जिसके जवाब में भारतीय टीम ने एक गेंद शेष रहते 19.4 ओवरों में 6 विकेट खोकर 127 रन बना लिए। भारत के दिनेश कार्तिक को 'मैन ऑफ द मैच' घोषित किया गया।

टी-20 विश्व कप क्रिकेट-
टी-20 क्रिकेट के पहले विश्व कप का आयोजन दक्षिण अफ्रीका में 11 से 24 सितंबर 2007 के दौरान हुआ। टी-20 क्रिकेट का पहला विश्व कप भारत ने जीता। फाइनल में भारत ने पाकिस्तान को 5 रन से हराकर खिताब अपने नाम किया। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद के तत्वाधान में टी-20 क्रिकेट चैम्पियनशीप का आयोजन हर वर्ष किया जाएगा।

सुपरमैक्स क्रिकेट-
'सुपरमैक्स क्रिकेट' क्रिकेट का आधुनिक संस्करण हैं। टेस्ट मैचों व एकदिवसीय मैचों के पश्चात् क्रिकेट अब इस नये रूप में विकसीत हो रहा है। इसके तहत प्रत्येक टीम को 10-10 ओवर खेलने को मिलेंगे। कुल मिलाकर साढ़े तीन घण्टे के इस मैच में दोनों टीमों को 10 ओवर की एक-एक पारी के लिए 45 मिनट का समय प्रदान किया जाता है। बल्लेबाज द्वारा लगाए गए प्रत्येक चौके पर इस तरह के मैच में 8 रन प्रदान किये जाते हैं, जबकि बल्लेबाज के सामने स्थित मैक्सजोन में गेंद जाने पर 12 रन प्रदान किये जाते हैं। मैक्सजोन में किसी क्षेत्ररक्षक को खड़ा करने की अनुमति नहीं होती। ''नो बाल'' व वाइड बाल की स्थिति में अगली गेंद पर बल्लेबाज फ्री हिट लगा सकता है तथा उस पर उसे आउट घोषित नहीं किया जा सकता। ''सुपरमैक्स'' क्रिकेट के जनक न्यूजीलैंड कें पूर्व कप्तान (वर्तमान में टीवी कमन्ट्रेटर) मार्टिन क्रो हैं।

भारत का पहला सुपरमैक्स क्रिकेट-
भारत ने अपना पहला सुपरमैक्स क्रिकेट क्राइस्ट चर्च में 4 दिसम्बर,2002 को खेला। न्यूजीलैंड ने यह मैच 21 रनों से जीता। न्यूजीलैंड की टीम ने अपनी दोनों पारियों में क्रमश: 5 विकेट पर 123 व 7 विकेट पर 118 रन बनाये, जबकि भारतीय टीम ने पहली पारी में 5 विकेट पर 133 रन बनाने के पश्चात् दूसरी पारी में 6 विकेट खोकर 87 रन ही बना सकी। पहली पारी में 27 गेंदों पर 72 रन बनाने वाले सचिन तेंदुलकर को ''मैन ऑफ दी मैच'' घोषित किया गया। इस मैच में भारतीय टीम का नेतृत्व वी.वी.एस.लक्ष्मण ने किया था।

Saturday, August 14, 2010

भारत में क्रिकेट का प्रारम्भिक स्वरुप


भारत में क्रिकेट की शुरूआत अंग्रेजों के आगमन के साथ हुई। ऐसी मान्यता है कि कतिपय अंग्रेज सैनिकों ने भारत में बसने वाले अंग्रेजों के साथ मिलकर इसकी शुरूआत की। भारतीय क्रिकेट का इतिहास सन् 1721 ई. से प्रारम्भ होता है। सन् 1792 ई. में कोलकाता में क्रिकेट क्लब की स्थापना हुई। ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारियों व अधिकारियों ने क्रिकेट को भारत में काफी लोकप्रिय बनाया। भारतीय क्रिकेट के इतिहास में पारसियों का योगदान स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है। सर्वप्रथम पारसियों के सहयोग से ही भारत की ओर से पहली क्रिकेट टीम सन् 1866 ई. में इंग्लैंड का दौरा करने गई।

प्रारम्भ में कतिपय भारतीय क्रिकेट खिलाड़ियों ने विदेशी टीमों की ओर से खेलकर अपनी क्षमता का सशक्त परिचय दिया था। सर्वप्रथम महाराज रंजीत सिंह ने इंग्लैंड की टीम में सम्मिलित होकर विश्व कप क्रिकेट में शतक बनाया था। इनके अलावा दलीप सिंह व इफ्तिखार अली खाँ पटौदी ने भी इंग्लैंड की ओर से टेस्ट क्रिकेट में प्रवेश किया।

सन् 1945 में महात्मा गांधी के विरोध के कारण, सन् 1892 में प्रारम्भ हुए प्रेसीडेंसी मैच, सन् 1907 में प्रारम्भ हुए टाएंगुलर, सन् 1913 में प्रारम्भ हुए क्वार्ड-एंगुलर, सन् 1938 में प्रारम्भ हुए पेंटागुलर जैसे प्रतियोगिताओं को बंद कर दिया गया।

रणजी ट्राफी व क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की स्थापना-
सन् 1934 में महाराजा रणजीत सिंह के नाम पर रणजी टाफी नामक राष्ट्रीय प्रतियोगिता की शुरूआत हुई। सन् 1928 ई. में आर.इ.ग्रांट की अध्यक्षता में क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की स्थापना हुई। भारत के घरेलू या अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैचों का संचालन इसी बोर्ड के द्वारा होता है। भारतीय क्रिकेट के प्रथम टेस्ट कप्तान सी.के.नायडू थे, जिनके नाम पर नायडू ट्राफी प्रदान की जाती है।

भारतीय टीम का पहला टेस्ट मैच-
भारत ने अपना पहला टेस्ट मैच क्रिकेट के मक्का कहे जाने वाले लार्ड्स के मैदान में 25 जून सन् 1932 में इंग्लैंड के विरुद्ध खेला, यह मैच इंग्लैंड ने भारत को 158 रन से हराकर जीता था।

पहले टेस्ट मैच के 11 खिलाड़ी-
पहले टेस्ट मैच के 11 खिलाड़ियों में सी.के.नायडू, जे.जी.नावले, जे.नाउमल, सैयद वजीर अली, एस.नजीर अली, एस.एच.एम.कौलाह, पी.ई.पालिया, लाल सिंह, एम.जहांगीर खान, अमर सिंह और मोहम्मद निसार थे।

''गिल्ली-डंडा'' से ''क्रिकेट'' तक


खेल अब शारीरिक विकास तक सीमित न रहकर युवाओं के लिए एक कैरियर के रूप में स्थापित हो गया है। कैरियर, मनोरंजन और नाम के आधार पर वर्तमान में क्रिकेट सर्वाधिक लोकप्रिय खेल है। क्रिकेट का यह खेल ''गिल्ली-डंडा'' के एक सामान्य खेल से उठकर लोकप्रियता के सर्वोच्च शिखर पर प्रतिष्ठित हो गया है। क्रिकेट की शुरूआत कहां हुई, इस सम्बन्ध में कोई निश्चित एक विचार नहीं है। कुछ लोग इसकी उत्पत्ति फ्रांस से हुई मानते हैं, तो कुछ इंग्लैंड में।


क्रिकेट की बाइबिल कहे जाने वाली किताब 'विजडन' के अनुसार, क्रिकेट शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम फ्लोरिडा के अंग्रेजी-इटालियन' शब्दकोश के एक संस्करण में हुआ था। सन् 1300 में 'किंग एडवर्ड' की आलमारी से प्राप्त सामग्री से 'बल्ले' और 'गेंद' के प्रयोग की पुष्टि होती है।


भारत में प्राचीन काल से कंदुक क्रीड़ा अर्थात गेंद के साथ खेले जाने वाले खेल काफी लोकप्रिय रहे हैं। इस संदर्भ में भगवान श्री कृष्ण के जीवन की एक प्रमुख घटना उल्लेखनीय है-
''एक बार भगवान श्रीकृष्ण यमुना नदी के किनारे अपने बाल सखाओं के साथ खेल रहे थे, तभी गेंद यमुना नदी में गिर गई। भगवान गेंद को निकालने के लिए नदी में उतरे और विषैले सर्प कालिय नाग का मर्दन किया।''

क्रिकेट का स्वर्णिम अध्याय-
क्रिकेट का स्वर्णिम अध्याय 1760 से प्रारम्भ होता है। सन् 1760 ई. में इंग्लैंड में प्रथम क्रिकेट क्लब की स्थापना हुई। यह क्लब क्रिकेट के लिए सुखद सिद्ध हुआ। 'हैम्बलडन क्लब' नामक इस संस्था का मुख्यालय 'बोडहाफपेनी डाउन' में था। लगभग तीन दशक तक यह क्लब क्रिकेट के ऐतिहासिक पन्नों पर छाया रहा। इस क्लब ने बड़ी संख्या में कई क्रिकेट प्रतिभाओं को आगे बढ़ाया ।

क्रिकेट के इतिहास का दूसरा स्वर्णिम अध्याय 'मेरिलबोन क्रिकेट क्लब' की स्थापना के साथ प्रारम्भ होता है। सन् 1787 ई. में 'मेरिलबोन क्रिकेट क्लब' की स्थापना हुई।

18 जून, सन् 1744 ई. में 'लंदन क्लब' द्वारा सर्वप्रथम क्रिकेट के नियम बनाए गए। सन् 1807 ई. में कैंट के जॉन विल्स ने पहली बार हाथ घुमाकर गेंद फेंकनी शुरू की, परन्तु यह काफी विवाद का विषय बना रहा। सन् 1822 ई. में अपनी इस विलक्षण कला का विरोध होते देख जॉन विल्स ने क्रिकेट जीवन से ही सन्यास ले लिया।

सन् 1864 के बाद क्रिकेट के विकास के लिए निरंतर प्रयास होते रहे। क्रिकेट को विकसित करने के क्रम में डॉ.डब्ल्यू.जी.ग्रेस को नहीं भुलाया जा सकता है। श्री ग्रेस ने बल्लेबाजी की तकनीक में उल्लेखनीय सुधार किया। कतिपय समीक्षक इन्हें क्रिकेट का जनक भी कहते हैं।

काउंटी क्रिकेट की शुरूआत-
सन् 1873 ई. में अधिकृत रूप से काउंटी क्रिकेट की शुरूआत हुई थी। सन् 1877 ई. में क्रिकेट को अंतरराष्ट्रीय स्वरूप मिला। इसी वर्ष एक रोमांचकारी घटना भी घटित हुई, आस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के मध्य टेस्ट क्रिकेट का मैच खेला गया। इस मैच को आस्ट्रेलियाई टीम ने जीता। इसके विरोध स्वरूप कुछ अंग्रेज महिलाओं ने " बेल्स " जलाकर इंग्लिश क्रिकेट का दाह संस्कार सा कर दिया। बेल्स की राख को आस्ट्रेलियाई टीम को सौंप दिया गया। उल्लेखनीय है कि तभी से इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया की क्रिकेट टीमें 'एशेज' (राख) के लिए एक दूसरे के विरुद्ध मैच खेलती हैं, यह सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है, और एशेज क्रिकेट की शब्दावली में उल्लेखनीय शब्द बन गया है।
इंटरनेशनल क्रिकेट कांफ्रेंस की स्थापना-
सन् 1909 में इंग्लैंड में इम्पीरियल क्रिकेट कांफ्रेंस की स्थापना हुई। इसी के साथ क्रिकेट को अंतरराष्ट्रीय मान्यता भी मिली। इंग्लैंड के अतिरिक्त आस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका भी इसके सदस्य बने। सन् 1926 में भारत, वेस्टइंडीज एवं न्यूजीलैंड भी इसके सदस्य बन गए। सन् 1952 में पाकिस्तान को इसकी सदस्यता मिली। सन् 1971 ई. में रंगभेद नीति के कारण दक्षिण अफ्रीका की सदस्यता समाप्त कर दी गई।

सन् 1965 में ''इम्पीरियल क्रिकेट कांफ्रेंस'' का नाम बदलकर ''इंटरनेशनल क्रिकेट कांफ्रेंस'' (अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट महासंघ) कर दिया गया। राष्ट्रमंडल देशों (वे देश जो कभी ब्रिटेन के उपनिवेश रहे, राष्ट्रमंडल देश कहलाते हैं ) के अतिरिक्त सहसदस्य के रूप में अन्य देशों को भी धीरे-धीरे सदस्यता मिली। वर्तमान में इसके सदस्यों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है।

भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया, वेस्टइंडीज, न्यूजीलैंड, अमरीका, अर्जेन्टीना, कनाडा, डेनमार्क, हालैंड, कीनिया, जिम्बाब्वे, बरमूडा, फिजी, सिंगापुर, हांगकांग, इजरायल, मलेशिया आदि इसके सदस्य या सहसदस्य हैं।
एकदिवसीय मैचों का पदार्पण और प्रथम विश्व कप की शुरूआत-
5 जनवरी, 1971 ई. को क्रिकेट के इतिहास का पहला एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैच ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के मध्य खेला गया। इस मैच में 40 ओवर प्रति पारी रखा गया। इंग्लैंड की टीम ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 39.4 ओवरों में 190 रन बनाया, इसके विपरीत ऑस्ट्रेलिया ने 5 विकेट खोकर यह लक्ष्य हासिल कर लिया।

एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैचों के आयोजन व विकास का श्रेय इंग्लैंड को ही जाता है। इंग्लैंड के प्रयासों के परिणाम स्वरूप ही इंग्लैंड में प्रथम विश्व कप का आयोजन हुआ। इस विश्व कप क्रिकेट में आठ देशों की टीमों- भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, वेस्टइंडीज एवं पूर्व अफ्रीका ने भाग लिया। इस विश्व कप के फाइनल में वेस्टइंडीज ने ऑस्ट्रेलिया को 17 रनों से पराजित किया था।

बौद्धिक विकास का खेल "शतरंज"


शतरंज दो खिलाड़ियों के बीच खेला जाने वाला एक बौद्धिक एवं मनोरंजक खेल है। इस खेल को बुद्धि एवं विवेक का खेल माना जाता है। मानसिक विकास के लिए खेल एक महत्वपूर्ण कारक है। शारीरिक रूप से मजबूती के लिए तो विभिन्न प्रकार के खेल हैं, लेकिन जब मानसिक विकास की बात होती है तो शतरंज का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने अन्य खेलों की भांति इसे भी एक नयी दिशा दी है। कम्प्यूटर के साथ खिलाड़ी का शतरंज खेलना इस खेल का आधुनिक संस्करण ही कहा जाएगा।

शतरंज का इतिहास-
शतरंज एक प्राचीन एवं विश्व प्रसिद्ध खेल है। शतरंज का आविष्कार भारत में माना जाता है, परंतु इसकी उत्पत्ति कब और कैसे हुई, इसका कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता। एक किंवदन्ती के अनुसार, शतरंज का आविष्कार लंका के राजा रावण की पत्नी मन्दोदरी ने इस उद्देश्य से किया था कि उसका पति रावण अपना सम्पूर्ण समय युद्ध में व्यतीत न कर सके। रावण के पुत्र मेघनाद की पत्नी ने भी इसी उद्देश्य से इस खेल का अनुकरण किया था।शतरंज का खेल भारत से अरब होते हुए यूरोप में गया और फिर १६वीं सदी में पूरे संसार में प्रसिद्ध होता चला गया।

शतरंज एक चोपाट (बोर्ड) के उपर खेला जाता है । चोपाट के उपर कल ६४ खाने होते है। जिसमें ३२ चोरस काले रंग और ३२ चोरस सफेद रंग के होते हैं । प्रत्येक खिलाड़ी के पास १६-१६ चोरस होते है, जिसमें एक राजा, वजीर, दो उंट, दो घोडे, दो हाथी और आठ सैनिक शामिल रहते हैं। बीच में राजा व वजीर रहता है। उनकी अगली रेखा में आठ पैदल या सैनिक रहते हैं।

शतरंज खेलते समय ध्यान देने योग्य बातें-
चोपाट रखते समय यह ध्यान दिया जाता है की दोनो खिलाड़ियों के दायें तरफ का खाना सफेद होना चाहिये तथा वजीर के स्थान पर काला वजीर काले चोरस में व सफेद वजीर सफेद चोरस में होना चाहिये।

खेल की शुरुआत-
खेल की शुरुआत सफेद खिलाड़ी से की जाती है। सामान्यतः वजीर या राजा के आगे रखे गया पैदल या सैनिक दो चोरस आगे चलता है। हालांकि कोई भी सैनिक दो चोरस चल सकता है, अधिकतर खेले जाने वाले खेल में सैनिक को एक चोरस ही आगे चलाया जाता है।

राजा सदा के लिये एक ही चोरस चल सकता है। अगर राजा को चलने के लिए बाध्य किया गया और वह चल नहीं सकता तो मान लीजिये कि खेल समाप्त हो गया। वजीर किसी भी दिशा में चल सकता है।

ऊंट केवल अपने रंग वाले चोरस में चल सकता है। यानि काला उंट काले चोरस में ओर सफेद ऊंट सफेद चोरस में। ऊंट के पास तिरछा चलने के अलावा अलावा कोई चाल नहीं होती ।
घोडा अटपटा चलता है, यानि अगर घोड़ा सफेद चोरस पर होगा तो चाल समाप्त होते रंग बदलता है। सामान्यतः लोग इसे ढाई चाल भी कहते है।
हाथी की चाल ऐसी नहीं है। वह सिर्फ सीधे या आड़े ही चल सकता है। अपनी बारी आने पर अगर खिलाड़ी के पास चाल के लिये कोई चारा नहीं है तो वह अपनी हार स्वीकार कर लेता है।

विश्व प्रसिद्ध शतरंज खिलाड़ी-

शतरंज के खेल में भारत का वर्चस्व रहा है। भारतीय खिलाड़ी विश्वनाथन आनंद दुनिया के नम्बर एक खिलाड़ी हैं। आनंद के अलावा कोनेरू हम्पी, विजयालक्ष्मी सुब्बरमण , तानिया सचदेव, संदीपन चंदा, श्रीनाथ नारायणन प्रमुख हैं । विदेशी खिलाड़ियों में वैसिली इवानचुक, व्लादिमीर क्रामनिक, वेसेलिन टोपलोव, पीटर लोको प्रमुख हैं।

विभिन्न खेल मैदानों के माप


खेलकूद की महत्ता प्राय: सभी विद्वानों ने स्वीकार की है। दैनिक जीवन में खेलकूद का अति विशिष्ट स्थान है। खेलकूद से अंतरराष्ट्रीय अवबोध का विकास होता है।मानव जीवन में खेल से आत्मनियंत्रण की भावना का विकास होता है। विभिन्न प्रकार के खेलों के लिए मैदान की संरचना व माप महत्वपूर्ण होते हैं। कुछ खेलों के मैदानों के माप व खेलों में प्रयुक्त हाने उपकरणों के विवरण निम्नलिखित हैं-

फुटबाल-
फुटबाल के खेल के मैदान की लंबाई 100 मीटर × 64 मीटर से लेकर 110 मीटर तथा 75 मीटर तक होती है।
फुटबाल के गोल पोस्ट की ऊंचाई 8 फीट(2.44 मीटर) तथा चौड़ाई 24.66 फीट(7.32 मीटर) होती है।
फुटबाल के गेंद की परिधि 27 इंच से लेकर 28 इंच तक होती है, सेंटीमीटर में इसकी परिधि 68.5 सेमी. से लेकर 71 सेमी.तक होती है।
फुटबाल के फूले भाग का वायुमण्डलीय दबाव-0.6-1.1(60-100 ग्राम प्रति सेमी) सागरतटीय होता है।

हॉकी-
हॉकी के खेल के मैदान की माप 100 गज × 60 गज तथा मीटर में 91.40 मीटर तथा चौड़ाई 54.24 मीटर होती है।
हॉकी के गोल पोस्ट की ऊंचाई 7 फीट(2.13 मीटर) तथा चौड़ाई 4 गज (3.66 मीटर) होती है।
हॉकी बाल का वजन 5.5 औंस (156 ग्राम) से लेकर 5.75 औंस (163 ग्राम)तक होता है।
हॉकी गेंद की परिधि 8.81 इंच (22.4 सेमी.) से लेकर 9.25 (23.5 सेमी.) इंच तक होती है, सेंटीमीटर में इसकी परिधि 68.5 सेमी. से लेकर 71 सेमी.तक होती है।
हॉकी स्टीक का कुल भार 28 औंस से अधिक और 12 औंस से कम नहीं होना चाहिए।

वॉलीबाल-
वॉलीबाल के मैदान की लंबाई 18 मीटर और चौड़ाई 9 मीटर होती है।
बाल की परिधि 66 सेमी. होती है। बाल का भार 270 ग्राम होता है।
पुरुषों के लिए नैट की लंबाई 9.50 मीटर, चौड़ाई 1 मीटर व ऊंचाई 2.43 मीटर होती है।
महिलाओं के लिए नैट की लंबाई 9.5 मीटर, चौड़ाई 1 मीटर व ऊंचाई 2.24 मीटर होती है।

कबड्डी-
भारतीय कबड्डी संघ द्वारा निर्धारित कबड्डी के खेल के मैदान की लंबाई 13 मीटर और चौड़ाई 10 मीटर होती है।

खो-खो-
खो-खो के खेल के लिए मैदान की लंबाई 34 मीटर व चौड़ाई 10 मीटर होती है।
मुक्केबाजी-
मुक्केबाजी रिंग की माप 3.66 वर्गमीटर से लेकर 6.10 वर्गमीटर तक होती है।


बैडमिंटन-
एकल स्पर्धा के लिए बैडमिंटन के कोर्ट की लंबाई 5.18 मीटर और चौड़ाई 13.40 मीटर होती है।
युगल स्पर्धा के लिए कोर्ट की लंबाई 6.10 मीटर और चौड़ाई 13.40 मीटर होती है।
नैट की जमीन से ऊंचाई 1.59 मीटर होती है।
शटल का भार 4.73 से 5.50 ग्राम तक होता है।

लॉन टेनिस-
लॉन टेनिस के कोर्ट की लंबाई 23.77 मीटर और चौड़ाई 8.23 मीटर होती है।
टेनिस बाल का व्यास 6.35 सेमी.से लेकर 6.67 सेमी.तक होता है।
टेनिस बाल का भार 56.7 ग्राम से लेकर 58.5 ग्राम तक होता है।
गेंद का रंग सफेद या पीला होता है।
नेट की ऊंचाई 3.6 फीट होती है।

टेबल टेनिस-
टेबल टेनिस के मेज की लंबाई 275 सेंटीमीटर, चौड़ाई 152.5 सेंटीमीटर, व ऊंचाई 76 सेंटीमीटर होती है।
बाल का व्यास 37.2 मिमी.से लेकर 38.4 मिमी.तक होता है।
बाल का भार 2.40 ग्राम से लेकर 2.53 ग्राम तक होता है।

कुश्ती के शिखर पर भारतीय


भारतीय कुश्ती को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान सुशील कुमार ने दिलाई। २००८ में बीजिंग में खेले जा रहे ओलंपिक खेलों में कांस्य पदक जीत कर सुशील कुमार ने १९५२ के इतिहास को एक बार फिर से दोहराया। १९५२ में यह पदक महाराष्ट्र के खशाबा जाधव ने जीता था। सुशील कुमार ने 66 किग्रा फ्रीस्टाइल में कजा‍खिस्तान के लियोनिड स्प्रिडोनोव को हराया।


सुशील ने २००६ में दोहा एशियाई खेलों में काँस्य पदक जीतकर अपनी प्रतिभा का पहला परिचय दिया था। अर्जुन पुरस्कार विजेता सुशील ने अगले ही साल मई २००७ में सीनियर एशियाई चैम्पियनशिप में रजत पदक जीता और फिर कनाडा में आयोजित राष्ट्रमंडल कुश्ती प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक हासिल किया। अजरबेजान में हुई विश्व कुश्ती चैम्पियनशिप में वे हालाँकि आठवें स्थान पर पिछड़ गए थे लेकिन उसने यहीं से बीजिंग ओलिम्पिक खेलों के लिए क्वालीफाई कर लिया था। कुश्ती के भूतपूर्व पहलवानों में गामा, इमामबख्स, करीम बख्स, रहीम सुल्तानीवाला, गेंदासिंह एवं कीकर सिंह जैसे नामी पहलवान भी हुए हैं जिन्हें सन् १९०० में कुश्ती के बड़े उपाधि रूस्तम-ए-हिन्द एवं रूस्तम-ए-जहान प्रदान किया गया।


कुश्ती एक ऐसा खेल है जिसमें खिलाड़ी को रणभूमि में अपनी आत्मरक्षा करनी पड़ती है। भारत में कुश्ती को मल्ल युद्ध के नाम से भी जाना जाता है। प्राचीन भारतीय ग्रंथों में मल्ल युद्ध के अनेक प्रमाण मिलते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने कंस को मल्ल युद्ध में हराकर उसका वध कर दिया था। महाभारत में भी भीम ने मल्ल युद्ध में जरासंध का वध किया था। ये कुछ ऐसे प्रमाण हैं जिनसे मल्ल युद्ध के प्राचीनता का आभास होता है।


सबसे प्राचीन खेल है कुश्ती:
खेलों के इतिहास में भी कुश्ती सबसे प्राचीन खेल है, जिसका प्रमाण 2750 से 2600 ई.पू. में मिलता है। प्राचीन ओलिम्पक खेलों में कुश्ती को प्रतिष्ठित खेल का दर्जा प्राप्त है।


सर्वप्रथम 708 ई.पू. में ओलिम्पक खेलों में कुश्ती की स्पर्धाएं आयोजित हुई। 1896 के ओलिम्पक खेलों में कुश्ती एक ‘शो पीस´ स्पर्धा के रूप में शामिल थी। सन् 1904 के ओलिम्पक में कुश्ती `फ्री स्टाइल´ के रूप में वापस लौटी।


वर्तमान में कुश्ती खेलने की दो शैलियां प्रचलित हैं- `मुक्त शैली कुश्ती’ और `ग्रीको रोमन कुश्ती’। आधुनिक ग्रीको रोमन कुश्ती सर्वप्रथम फ्रांस में लोकप्रिय हुई थी। `मुक्त शैली´ एमेच्योर कुश्ती की एक विधा है, जो सम्पूर्ण विश्व में अपनाई गई है।

कुश्ती के खेल की शब्दावली:
जिस प्रकार कुश्ती एक अनोखा खेल है, वैसे ही इसमें प्रयुक्त होने वाले शब्द। कुश्ती लड़ने वाले प्रत्येक खिलाड़ी को इन शब्दों से परिचित होना आवश्यक है। कुश्ती के दौरान प्रयुक्त होने वाले कुछ प्रमुख शब्दों में- प्वाइंट, फाल, मैट, परमानेंट आबस्टकल्स, आबस्टकल्स इन बाउट, काशन, पेनल्टी प्वाइंट, डागफाल, फालबैक, फ्लाइंग मार्स, क्रास पेस, ब्रेक डाउन, ब्रिज, बाडी प्रेस, क्रैडल, हाइप टेक डाउन, हाफ नेल्सन, स्लैम, स्टिकलर्स, हुक, हेड होल्ड, डबल, क्रास बटक, रैफ्री, टाइम कीपर, सडेन डेथ, डबल नेल्सन, टाई और फाउल प्रमुख हैं।

बैडमिंटन में बुलंद भारत


भारत में बैडमिंटन का खेल बहुत लोकप्रिय है। बैडमिंटन एक ऐसा खेल है जो हर उम्र के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। बैडमिंटन को ''पूना'' के नाम से भी जाना जाता है। भारत में बैडमिंटन के कई महान एकल खिलाड़ी हुए हैं, लेकिन भारतीय बैडमिंटन को सही मायने में दुनिया के सामने लाने का श्रेय जाता है प्रकाश पादुकोण को जिन्होंने १९८१ के कुआलालंपुर विश्व कप फाइनल में चीनी सुपरस्टार हान जियान को १५-० से हराकर चीनियों के सपनो को ध्वस्त कर दिया था।

हाल ही में भारतीय बैडमिंटन की नई सनसनी हैं साइना नेहवाल। महिला वर्ग में साइना को विश्व बैडमिंटन संघ द्वारा विश्व में सातवां स्थान प्राप्त है। साइना विश्व ओलंपिक खेलों के बैडमिंटन एकल क्वार्टर फाइनल में पहुंचने वाली प्रथम भारतीय महिला और विश्व कनिष्ठ बैडमिंटन चैम्पियनशिप जीतने वाली प्रथम भारतीय हैं। साइना ने २१ जून, २००९ को इंडोनेशियाई ओपन जितने के बाद चीन के लिन वांग को हराकर जकार्ता, सुपर सीरीज़ प्रतियोगिता का खिताब हासिल किया।

भारत में अन्य प्रतिभावान बैडमिंटन खिलाड़ियों में प्रकाश पादुकोण के अलावा पुलेला गोपीचंद, अभिन श्याम गुप्ता, निखिल कानितकर, सचिन राठी, अपर्णा पोपट, साइना नेहवाल और नेहा अटवाल प्रमुख हैं।

बैडमिंटन खेलने के नियम
इसमें एक साथ चार खिलाड़ी खेल सकते हैं। आयताकारनुमा खेल के मैदान को बीचों-बीच एक जाल (नेट) द्वारा दो बराबर भागों में बांटा जाता है। प्रत्येक छोर पर खड़ा खिलाड़ी अपने रैकेट से शटलकाक (चिड़ियां) को मैदान के दूसरे ओर खड़े खिलाड़ी की ओर मारता है। दूसरी ओर खड़े खिलाड़ी को कॉक के बिना जमीन स्पर्श किए विरोधी खिलाड़ी की ओर मारना होता है। यदि कॉक किसी भी खिलाड़ी के पाले में या जाल(नेट) में उलझ जाती है तो विरोधी खिलाड़ी को अंक प्रदान किया जाता है। इस खेळ में १४ अंक के तीन राउंड होते हैं। जो खिलाडी तीन में से दो राउंड (चक्र) जीतने में सफल होता है उसे विजेता घोषित कर दिया जाता है।

बैडमिंटन का इतिहास:
बैडमिंटन की शुरूआत 19वीं सदी में हुई। सन् 1860 में यह खेल सर्वप्रथम ''बैडमिंटन हाउस'' में प्रस्तुत किया गया, जहां इस खेल को अधिकारिक रूप से बैडमिंटन का नाम दिया गया। सन् 1887 तक यह खेल अंग्रेजों द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार इंग्लैंड में खेला जाता रहा। 'बैडमिंटन एसोशिएसन ऑफ इंग्लैंड' ने सन् 1893 में बैडमिंटन खेलने के नियम बनाए, और सन् 1899 में विश्व के पहले बैडमिंटन चैम्पियनशिप ''आल इंग्लैंड ओपन बैडमिंटन चैम्पियनशिप'' की शुरूआत की। अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन संघ (विश्व बैडमिंटन संघ) की स्थापना 1934 में हुई। भारत इस संघ से 1936 में जुड़ा।

गिल्ली-डंडा का ‘फंडा’


प्राचीन भारत में हर आयु के लोग अपने मनोरंजन के लिए विविध प्रकार के खेल खेला करते थे, जो मनोरंजन के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी लाभप्रद होते थे। ऐसे ही खेलों में प्रमुख खेल है- 'गिल्ली डंडा'। गिल्ली-डंडा खेलने के लिए बेलनाकार लकड़ी का बना एक फुट का डंडा और पांच इंच लम्बी गुल्ली की जरूरत होती है।

गिल्ली-डंडा खेलने के नियम
इस खेल में खिलाड़ियों की संख्या मायने नहीं रखती, दो खिलाड़ी भी खेल सकते हैं और दस खिलाड़ी भी। गिल्ली-डंडा खेलने से पहले मैदान के किसी भी भाग में एक छेद तैयार कर दिया जाता है, जो देखने में परंपरागत नाव की तरह प्रतीत होता है। यह छेद गिल्ली से छोटा होता है लेकिन जैसे-जैसे खेल आगे बढ़ता है छेद बड़ा होता चला जाता है।

इसमें सबसे पहले एक टीम का खिलाड़ी बेलनाकार डंडे से गिल्ली को पहले से तैयार छिद्र में रखकर हवा में मारता है। यदि विरोधी टीम का खिलाड़ी गिल्ली को पकड़ लेता है तो मारने वाले खिलाड़ी को खेल से बाहर (ऑउट) मान लिया जाता है।

जब गिल्ली मैदान पर गिरकर स्थिर हो जाता है तो विरोधी टीम का क्षेत्ररक्षक गिल्ली को उठाकर डंडे पर मारता है। इसके लिए क्षेत्ररक्षक को सिर्फ एक ही मौका दिया जाता है। क्षेत्ररक्षक यदि गिल्ली को डंडे पर मारने में सफल हो जाता है तो गिल्ली मारने वाला खिलाड़ी खेल से बाहर हो जाता है।

जब क्षेत्ररक्षक गिल्ली को डंडे पर मारने में सफल नहीं हो पाता तो स्ट्राईकर अर्थात डन्डे से गुल्ली को उड़ाने वाले खिलाड़ी को अंक प्रदान किया जाता है तथा वह दूसरी बार गिल्ली को मारने के लिए तैयार हो जाता है। स्ट्राइकर यदि गिल्ली को मारने में तीन बार असफल होता है तो उसे खेल से बाहर कर दिया जाता है। जो टीम ज्यादा अंक अर्जित करती है उस टीम को विजेता घोषित कर दिया जाता है।

गिल्ली-डंडा का खेल कई प्रकार से खेला जाता है। सामान्य रूप से खेले जाने वाले खेल में स्ट्राइकर गिल्ली को दो बार मारता है। पहली बार जमीन पर रखकर और दूसरी बार गिल्ली को हवा में उछालकर। खेल के कुछ प्रकारों में स्ट्राइकर द्वारा गिल्ली मारने के बाद गिल्ली के मारे गये स्थान से उसके गिरने वाले स्थान तक की दूरी पर अंक निर्धारित होता है। स्ट्राइकर एक बार में गिल्ली को हवा में जितनी बार मारेगा उसके अंक दोगुने हो जाएंगे।

गिल्ली-डंडा भारत के प्राचीनतम खेलों में प्रमुख खेल है। भारत में इस खेल को विविध नामों से जाना जाता है- बांग्ला में गुल्ली-डंडा को 'दंग्गुली', कन्नड़ में ‘चिन्नी-दंदु’, मलयालम में ‘कुत्तियुम-कोलम, मराठी में विति-दंदु, तमिल में कित्ती-पुल्लू, तेलुगु में बिल्लम-गोडू कहते हैं। यह खेल मुख्य रूप से भारत, दक्षिण यूरोप और दक्षिण एशिया में खेला जाता है। भारत के उत्तर प्रदेश और पंजाब प्रांत में गिल्ली-डंडा कॉफी लोकप्रिय खेल है। गिल्ली-डंडा के कुछ प्रसिद्ध भारतीय खिलाड़ियों में दीपाली गोड़, वरूण, सोमेंद्र कुमार, अजय कौशिक, रोहित मिश्रा, विजय चौधरी, विवेक बरनवाल, उपेन्द्र कुमार, सत्येंद्र कुमार और संदीप प्रकाश प्रमुख हैं।

उड़ी रे पतंग....

उड़ी  रे पतंग....
भारतीय खेलों की समृद्ध परंपरा में पतंग का विशिष्ट स्थान है। पतंग एक खेल के साथ ही एक पर्व भी है। मकर संक्रांति को 'पतंग पर्व' के रूप में भी मनाया जाता है। मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने के पीछे कुछ धार्मिक भाव भी प्रकट होता है। इस दिन सूर्य मकर रेखा से उत्तर की ओर आने लगता है। सूर्य के उत्तरायण होने की खुशी में पतंग उड़ा कर भगवान भास्कर का स्वागत किया जाता है साथ ही आंतरिक आनंद की अभिव्यक्ति भी होती है।
भगवान श्रीराम ने भी उड़ाई थी 'पतंग'
'पतंग' शब्द बहुत प्राचीन है। रामचरित मानस में महाकवि तुलसीदास ने ऐसे प्रसंगों का उल्लेख किया है, जब भगवान श्रीराम ने अपने भाईयों के साथ पतंग उड़ाई थी। इस संदर्भ में बाल काण्ड में उल्लेख मिलता है:
'राम इक दिन चंग उड़ाई।
इंद्रलोक में पहुंची जाई॥'

हालांकि,पतंग के संबंध में कोई विशेष लिखित जानकारी उपलब्ध नहीं है। सूर्य के लिए भी पतंग शब्द का प्रयोग हुआ है। पक्षियों को भी पतंग कहा जाता है। 'कीट-पतंगे' शब्द आज भी प्रयोग में है। संभव है इन्हीं शब्दों से वर्तमान पतंग का नामकरण किया गया हो। भारत के अलावा मलेशिया, जापान, चीन, थाईलैंड, वियतनाम आदि देशों में भी पतंग उड़ाई जाती है।
भारत के विभिन्न प्रांतों में पतंग उड़ाने की परंपरा है किन्तु उड़ाने का मौसम समान नहीं है।

पतंग उड़ाने की प्रक्रिया
पतंग उड़ाने की प्रक्रिया थोड़ी कठिन होती है। मंज्जा (धागा) को पकड़कर, पतंग को हवा में उड़ाया जाता है। पतंग जब हवा के साथ उड़ने लगती है तब ढील(मंज्जा को छोड़ते जाना) दिया जाता है। उड़ाते समय यह ध्यान दिया जाता है कि पतंग की मुंडी किस दिशा में है। उड़ाने वाला मंज्जा उंगली से खींचकर छोड़ता है जिसे ठोनकी कहते हैं। यह ठोनकी बार-बार देने से पतंग की मुंडी जिस दिशा में है वह उसी दिशा में जाने लगती है।

पेंच इसका महत्वपूर्ण पहलू है। पेंच जिसे अन्य शब्दों में मैच कह सकते हैं। जब कोई पतंग उड़ा रहा हो तथा कोई अन्य व्यक्ति भी पतंग उड़ा दे और उसकी मानसिकता पेंच लड़ाने की हुई तो दोनों व्यक्ति अपनी-अपनी पतंग को इस तरह से उड़ाते हैं कि एक दूसरे में फँस जाये। फँस जाना ही पेंच कहलाता है। दोनों व्यक्ति का यही प्रयास होता है कि वह नीचे से उठाकर विरोधी के पतंग को पेंच करें। पेंच लड़ते ही पतंग के अन्य प्रेमी भी सतर्क हो जाते हैं जिन्हें पतंग लूटने वाला कहा जाता है। ऐसे लोग यह नहीं देखते कि वह गली में हैं या सड़क पर। उनकी नजर केवल पतंग पर होती है। कई लोग लूटने के लिए सरगा (पेड़ की डाल) लेकर चलते हैं।

पतंग के कटने पर एक ही शब्द का संबोधन होता है, जिसे 'वई काटा' कहते हैं। जिसकी पतंग कटती है वह अपने हिस्से का मंज्जा शीघ्र ही खींचता है अन्यथा इसे भी बीच में कोई पकड़कर तोड़ लेता है।

कटी पतंग लूट ली जाती है या फिर लूट में फटने के बाद फेंक दी जाती है। किसी-किसी को पतंग के साथ आया हुआ मंज्जा भी मिल जाता है।

Friday, August 13, 2010

युद्ध कौशल का रोचक खेल मुक्केबाजी


मुक्केबाजी युद्ध-कला प्रदर्शन के साथ एक खेल भी है जिसमें एक ही वजन वर्ग के दो खिलाड़ी एक-दूसरे के उपर मुक्के से प्रहार करते हैं। इसका संचालन निर्णायक (मध्यस्थ) द्वारा किया जाता है। इसे तीन मिनट के अंतराल में एक क्रम के अनुसार खेला जाता है जिसे ‘राउण्ड’ कहते हैं।

खेल के विजेता की घोषणा तीन प्रकार से की जाती है-
पहला- यदि खिलाड़ी अपने प्रतिद्वंद्वी पर प्रहार करने से चूक जाये और मध्यस्थ द्वारा 10 गिनती गिनने से पहले उठने में असमर्थ हो तो विरोधी खिलाड़ी को विजेता घोषित कर दिया जाता है।
दूसरा- घायल खिलाड़ी द्वारा खेल रोकने की स्थिति में विरोधी खिलाड़ी को विजेता घोषित कर दिया जाता है।
तीसरा- जब पहले से निर्धारित चक्र (राउण्ड) तक लड़ाई समाप्त नहीं होती है तो मध्यस्थ या निर्णायक मण्डल द्वारा विजेता की घोषणा की जाती है।

इतिहास के आईने में मुक्केबाजी:
मुक्केबाजी की प्रतियोगिता प्राचीन सुमेरियन, इजिप्टीयन, और मिनोअन के समय में हुई थी। ओलम्पिक में मुक्केबाजी को एक खेल के रूप में 688 ई.पू. में मान्यता मिली। आधुनिक मुक्केबाजी का जन्म यूरोप में हुआ।

भारत में मुक्केबाजी काफी लोकप्रिय खेल है। सन् 1949 में भारतीय युवाओं को इस इस खेल के प्रति प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से भारतीय एमेच्योर मुक्केबाजी संघ की स्थापना की गयी, जो अंतरराष्ट्रीय एमेच्योर मुक्केबाजी संघ से संबद्ध हैं। जिसने युवाओं के मन में इस खेल के प्रति सम्मान जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अपनी स्थापना के बाद से इस संगठन से अब तक आठ राज्य संबद्ध हो चुके हैं जिसमें मुंबई, चेन्नई, बंगाल, गुजरात, मध्य प्रदेश, हैदराबाद प्रमुख हैं। अपने स्थापना के बाद से लेकर अब तक इस संघ ने 42 जूनियर और 22 सबजूनियर प्रतियोगिताओं का आयोजन करा चुका है। वर्तमान समय में यह संघ नियमित रूप से विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं का आयोजन करवाता है।

प्रसिद्ध भारतीय मुक्केबाज-
प्रसिद्ध भारतीय मुक्केबाजों में विजेंद्र सिंह, जितेंद्र कुमार, अखिल कुमार, चार बार की विश्व चैम्पियन एम.सी.मेरीकॉम, हवा सिंह, मो.अली कमर, डिंको सिंह प्रमुख हैं। विजेंद्र सिंह ने बीजिंग ओलम्पिक (2008) के मुक्केबाजी प्रतिस्पर्धा में पहली बार काँस्य पदक जीतकर भारत का गौरव बढ़ाया।

भारत में फुटबाल


वर्तमान समय में दुनिया में सबसे लोकप्रिय खेलों में से एक फुटबाल का खेळ भारत में ब्रिटिश शासन काल के दौरान आया। भारत में इसके बाद बहुत से क्लब अस्तित्व में आये। सन् 1872 में सबसे पहला फुटबाल क्लब कोलकाता में स्थापित हुआ। हांलाकि एक रिपोर्ट के अनुसार यह क्लब रग्बी के खेल का था जो सन् 1894 में फुटबाल के क्लब में परिवर्तित हो गया।

इस समय के अन्य क्लबों में डलहौजी क्लब, ट्रेडर्स क्लब और नौसेना स्वयंसेवक क्लब थे। शुरूआत में फुटबाल केवल ब्रिटिश सेना की टीमों के बीच खेला जाता था लेकिन धीरे-धीरे इस खेल के क्लब पूरे देश में स्थापित किये गये।
पश्चिम बंगाल में सन् 1889 में मोहन बागान एथलेटिक्स क्लब की स्थापना की गई। इस क्लब ने 1911 में हुए आईएफए प्रतियोगिता के फाइनल मैच में पूर्वी यार्कशायर रेजीमेंट को 2-1 से हराकर भारतीय टीम के रूप में एक बड़ी सफलता अर्जित की।

सन् 1893 में कोलकाता में ही भारतीय फुटबाल संघ की स्थापना हुई। लेकिन 1930 तक इस संघ में कोई भी भारतीय नहीं था। इसके बाद सन् 1970 तक भारत की राष्ट्रीय टीम ने भी कई सफलताएं अर्जित की। इस टीम ने ओलम्पिक और फीफा विश्व कप के लिए क्वालिफाई भी किया।

सन् 1950 में ब्राजील में हुए फीफा विश्व कप में भारत ने फाइनल में प्रवेश किया लेकिन जूते न होने के कारण टीम को फाइनल मैच खेलने से रोक दिया गया।
1951 और 1962 में हुए एशियन खेलों में भारतीय टीम ने स्वर्ण पदक भी जीता। इसके साथ ही 1956 में मेलबर्न में हुए ओलम्पिक खेलों में भारत चौथे स्थान पर रहा।

इसके बाद भारत ने लगातार 2007, 2008, और 2009 में नेहरू कप में विजय हासिल की। नेहरू कप के फाइनल मैचों में 2007 में भारत ने सीरिया को 1-0 से, 2008 में तजाकिस्तान को 4-1 से, और 2009 में पुन: सीरिया को पेनाल्टी शूट आउट में 6-5 से हराकर खिताब की रक्षा की और फीफा की जारी ताजा रैंकिंग में 135वें स्थान पर कब्जा जमाया।

भारत में फुटबाल अखिल भारतीय फुटबाल महासंघ द्वारा प्रशासित है जो एशियन फुटबाल परिसंघ से संबद्ध है। यह परिसंघ फीफा का ही एक अंग है।
ऐसे खेलें फुटबाल
फुटबाल दुनिया का सबसे लोकप्रिय खेल माना जाता है। यह खेल आयताकार घास के मैदान में खेला जाता है। फुटबाल का खेल दो टीमों के बीच खेला जाता है। इस खेल का लक्ष्य विरोधी टीम द्वारा मैदान के दोनों किनारों के अंत के बीच में लोहे के राड में बंधे जाल में गेंद को पहुंचाने का होता है जिसको गोल कहते हैं। जो टीम तय समय में जितना ज्यादा गोल करने में सफल होती है उस टीम को विजेता घोषित किया जाता है। अगर तय समय तक कोई भी टीम गोल करने में सफल नहीं होती है तो मैच को अतिरिक्त समय तक या पेनल्टी शूट आउट तक खिंचा जाता है। यह खेल के प्रारूप पर निर्भर होता है।
मैदान का प्रारूप
इस खेल का मैदान 100 मीटर लंबा होता है। मैदान का स्कोरिंग भाग 20 मीटर तथा बैक भाग भी 20 मीटर का होता है तथा मैदान का मध्य भाग 60 मीटर का होता है।

प्रसिद्ध भारतीय फुटबाल खिलाड़ी-

प्रसिद्ध भारतीय फुटबाल खिलाड़ियों में अर्जुन पुरस्कार प्राप्त पी.के.बनर्जी, टी.बालाराम, जरनैल सिंह, अरूण लाल घोष, युसुफ खान, प्रसून बनर्जी, सुधीर कर्माकर, शांति मलिक, बाईचुंग भूटीया, और आई.एम. विजय इत्यादि खिलाड़ी शामिल हैं।
वर्तमान समय में सुनिल छेत्री, क्लिमक्स लाव्रेंस, महेश गवली,शंमुगम वेंकटेश आदि खिलाड़ी अपने प्रदर्शन से देश का नाम रोशन कर रहे हैं।

चुस्ती और फुर्ती का खेळ `खो-खो´


मानव स्वास्थ्य के लिए खेल उतना ही आवश्यक है जितना कि भोजन। स्वस्थ शारीरिक विकास, मनोरंजन, विविध गुण-विकास आदि के लिए एक उत्कृष्ट साधन के रूप में खेलों का परिचय आज जगत के सभी विकसित मानव समूहों में विद्यमान है। खेल उतने ही प्राचीन हैं, जितना इस पृथ्वी पर मानवजीवन । मानवजीवन के विकास के साथ ही खेलों का भी विकास होता चला गया।कुछ खेल ऐसे भी होते हैं जो सरल, छोटे-बड़े, बिना साधन तथा अल्प सहज उपलब्ध साधनों द्वारा कहीं भी खेले जा सकते हैं। ये खेल सभी आयुवर्ग के लोगों के आकर्षण का प्रमुख विषय रहे हैं। खेल-खेल में ही समाज-जीवन के विविध अंगों को परिष्कृत व परिपुष्ट करने वाले इन खेलों में एक प्रमुख खेल है- `खो-खो´।

खो-खो एक भारतीय खेल है, जो दो टीमों के बीच खेला जाता है। प्रत्येक टीम में बारह-बारह खिलाड़ी होते हैं, जबकि मैदान में केवल नौ खिलाड़ी ही प्रवेश करते हैं। इस खेल में एक टीम के खिलाड़ी पंक्ति के रूप में मैदान के मध्य एक-दूसरे के विपरीत घुटने के बल बैठते हैं। दूसरी टीम अपने तीन खिलाड़ियों को मैदान के मध्य भेजती है। बैठने वाली टीम का उद्देश्य विरोधी टीम के खिलाड़ी को दौड़कर छुने का होता है, छुने वाला खिलाड़ी एक ही दिशा में भाग सकता है और बैठे हुए खिलाड़ियों की पंक्ति बीच में से दूसरी तरफ नहीं जा सकता है।

दूसरी तरफ जाने के लिए भागते हुए खिलाड़ी को पूरी पंक्ति की दौड़ लगानी होती है। अन्य विकल्प के रूप में पीछा करता हुआ खिलाड़ी बैठे हुए खिलाड़ी को दौड़ाने का कार्य सौंप देता है। पीछा करने वाला खिलाड़ी बैठे हुए खिलाड़ी को छुता है और जोर से चिल्लाता है-`खो´ जो इस बात को दर्शित करता है कि पीछा करते हुए खिलाड़ी ने बैठे हुए खिलाड़ी को अपना कार्य हस्तांतरित कर दिया। इस तरह जिस टीम ने कम समय में विरोधी टीम के खिलाड़ियों को पकड़ या छु लिया उस टीम को विजेता मान लिया जाता है।

खो-खो के खेल की महत्वपूर्ण प्रतियोगिताएं-
राष्ट्रीय चैम्पियनशिप, जूनियर राष्ट्रीय चैम्पियनशिप, सब जूनियर राष्ट्रीय चैम्पियनशिप, राष्ट्रीय महिला चैम्पियनशिप, तथा अखिल भारतीय अंतर विश्वविद्यालय और फेडरेशन कप आदि खो-खो की महत्वपूर्ण प्रतियोगिताएं हैं।

खो-खो के कुछ प्रसिद्ध खिलाड़ी
खो-खो के कुछ प्रसिद्ध खिलाड़ियों में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित श्री शेखर धरवाडकर, श्री रंग इनामदार, उषा नगरकर, नीलिमा सरोलकर, अचला देवरे आदि शामिल हैं।

टेबल टेनिस में भारत


‘टेबल टेनिस’ लॉन टेनिस के समान ही एक खेल है, जिसे दो या चार खिलाडी एक साथ खेल सकते हैं। इसमें एक छोटे टेबल को दो बराबर भागों में लाइन और छोटे से नेट से बांटते हैं। फिर एक छोटी सी गेंद को एक रैकेट जैसे बैट से एक दुसरे की तरफ मारते हैं। जब कोई खिलाडी गेंद नहीं मार पाता, तो विरोधी खिलाडी अंक हासिल करने में सफल हो जाता है। इस खेल में त्वरित प्रतिक्रिया की आवश्यकता होती है। नेट पर गेंद की तेज गतिविधियों को परखना पड़ता है।‘टेबल टेनिस फेडरेशन आफ इंडिया’ ने भारत को टेबल टेनिस को पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। प्रत्येक वर्ष भारत में विभिन्न प्रकार के टेबल टेनिस प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है जिससे भारतीय खिलाडियों अपनी क्षमता का प्रदर्शन करने का भरपूर मौका मिले। भारत में आज कई विश्व स्तर के टेबल टेनिस खिलाड़ी हैं जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर बेहतरीन प्रदर्शन कर देश का नाम ऊँचा किया। कमलेश मेहता, एस. रमन और चेतन बाबर जैसे नाम टेबल टेनिस की दुनिया में लंबे अर्से तक भारतीय तिरंगे की शान को आगे बढाते रहें हैं।
भारत में टेबल टेनिस का श्रीगणेश-

भारत में टेबल टेनिस की शुरुआत कोलकाता में सन् 1937 में टेबल टेनिस फेडरेशन आफॅ इंडिया की स्थापना के साथ हुई। धीरे धीरे भारत ने टेबल टेनिस के कई प्रतियोगिताओं में भाग लिया। १९५२ में होने वाले टेबल टेनिस की विश्व चैम्पियनशिप का आयोजन मुंबई में किया गया। जो भारत में टेबल टेनिस के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुआ । पहली बार विश्व चैंपियनशिप का आयोजन एशिया में हुआ था।

भारतीय टेबल टेनिस खिलाडियों को सन १९८८ में ओलंपिक खेलों में भाग लेने के लिए भेजा गया। १९८८ में ही टेबल टेनिस ओलंपिक में पहली बार शामिल किया गया था.। इसके बाद टेबल टेनिस की कई प्रतियोगिताओं में भारतीयों ने जीत दर्ज भी की जो उनके आत्मविश्वास को बढाने में मददगार साबित हुई। आज इसी विश्वास ने कई विश्वस्तरीय खिलाडियों को पैदा किया जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर बेहतरीन प्रदर्शन कर देश का नाम ऊँचा किया है । जब लोगों में इस खेल के प्रति रूची बढ़ी तो इसे एक व्यवसायिक खेल के रूप में बढावा मिला। भारतीय प्रबंधन इसका सफलतापूर्वक संचालन कर रहा है। भारत ने अब तक तीन वर्ल्ड चैम्पियनशिप की मेजबानी की है।

टेबल टेनिस का इतिहास
टेबल टेनिस के खेल को रायल टेनिस की श्रेणी में रखा जाता है। जिसका प्रयोग मध्यकाल के दौर में किया जाता था। 18वीं सदी में टेबल टेनिस को एक इनडोर गेम की तरह दक्षिण अफ्रिकी सेना के अधिकारियों द्वारा खेला जाता था। तब सिगार के बाक्स को ‘पैडल’ और वाइन की बोतल के कॉक को ‘गेंद’ के रूप में उपयोग किया जाता था। धीरे-धीरे यह खेल इंग्लैंड के लोगों द्वारा शौक के रूप में खेला जाने लगा। तब इसे पिंग-पांग, गोसिमा आदि कई नामों से जाना जाता था। 1898 में एक इंग्लिश स्पोटर्स कम्पनी 'जॉन एंड संन्स' ने पहला टेबल टेनिस सेट तैयार किया था।

आधुनिक समय में तकनीकी रूप से टेबल टेनिस में भी थोडा बदलाव आया है। आज रैकेट जैसे बैट या पैडल का प्रयोग किया जाता है, जिसमें वैल्यूम स्ट्रेच्ड हैंडल लगे होते हैं। खिलाडियों की सुविधाओं को देखते हुए रैकेट के साइज को भी कई वर्गो में बांटा गया है।

जैसे जैसे टेबल टेनिस का खेल ख्याति पाता गया लोगों में इसे अपनी संस्था से और इसके श्रेय को लेने की होड भी बढने लगी थी। 1901 तक तो दो समूह 'टेबल टेनिस एसोसिएशन' और 'पिंग पांग एसोसिएशन' आमने सामने खडे हो गये थे कि वो ही इसे अंतराष्ट्रीय स्तर पर पेश करेंगे। इस दौर के गर्म माहौल के बाद इस खेल की वजूद ही खतरे में पडने लगा था। लेकिन 1920 में टेबल टेनिस एक बार फिर लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहा। इसका श्रेय एक ब्रिटिश व्यक्ति आइवर मोन्टेग्यु को गया। 1926 में आइवर मोन्टेग्यु ने ‘पिंग पांग एसोसिएशन’ और ‘टेबल टेनिस एसोसिएशन’ को आपस में विलय कर एक नया संस्थान ''इंटरनेशनल टेबल टेनिस फेडरेशन''(आईटीटीएफ) बनाया। 7 दिसम्बर 1926 में निर्मित आईटीटीएफ के प्रथम चेयरमैन के रूप में आइवर मोन्टेग्यु को नियुक्त किया गया। अपने नियुक्ति के पांच दिन के अंतराल में ही टेबल टेनिस को अपना पहला रूल्स एंड गाइड को स्वीकृति मिली। इस नियमावली के आधार पर ही लन्दन में पहली प्रतियोगिता आयोजित की गई तथा इंग्लैंड ही पहला विश्व चैम्पियन बना।

खेल राष्ट्रमंडल खेल 2010- 'आएं और खेलें'


19वें राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी करना भारत के लिए गर्व की बात है। यह पहली बार है जब इतने बड़े स्तर के अंतरराष्ट्रीय खेलों का आयोजन भारत में हो रहा है। राजधानी दिल्ली में 3 से 14 अक्टूबर 2010 के बीच आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों में 71 देश के 8,000 खिलाड़ी व अधिकारी, 17 विभिन्न प्रकार के खेलों में भाग लेंगे। गत् 29 अक्‍तूबर 09 को लंदन में ब्रिटेन की महारानी ने ‘बेटन रिले’ रवाना कर राष्‍ट्रमंडल खेलों की भव्य शुरूआत की।


‘बेटन रिले’ का सफरनामा

राष्‍ट्रमंडल खेलों की एक महान परम्‍परा है ‘बेटन रिले’। पारम्‍परिक रूप से ब्रिटेन की महारानी लंदन के बकिंघम पैलेस से ‘बेटन रिले’ अर्थात मशाल सौंपकर राष्‍ट्रमंडल खेलों का शुभारंभ करती हैं। इस दौरान महारानी अपने संदेश के साथ किसी एथलीट को बेटन सौंपती हैं जो रिले का प्रथम मानद धावक होता है। इस वर्ष महारानी एलिजाबेथ ने यह बेटन भारत के ओलम्पिक स्‍वर्ण पदक विजेता अभिनव बिंद्रा को सौंपी।

वर्ष 2010 के राष्‍ट्रमंडल खेलों में महारानी की मशाल 8 मार्च, 2009 को इंडिया गेट पर एक शानदार सांस्‍कृतिक कार्यक्रम में प्रस्‍तुत की गई। मशाल का हेलिक्‍स का आकार एल्‍युमिनियम का बना होता है। इस पर काले, पीले और लाल रंग में मिट्टी के नमूने उभार तथा पर्त के रूप में लगाए गए हैं। यह हमारे देश की विविधता को प्रदर्शित करते हैं। मशाल के शीर्ष पर एक पारदर्शी पॉलीकार्बोनेट का आवरण है जिस पर महारानी द्वारा सौंपा गया 'एथलिट संदेश' रखा जाएगा। वर्ष 2009 में महारानी की ‘बेटन रिले’ को सभी राष्‍ट्रमंडल देशों की यात्रा पूरी करने में 240 दिन का समय लगने की आशा है जिसमें 1,70,000 किलोमीटर की दूरी तय की जाएगी। इसके बाद यह 100 दिन का राष्‍ट्रीय दौरा आरंभ करेगी जिसमें यह बेटन भारत के प्रत्‍येक राज्‍य और उसकी राजधानी में जाएगी, और यह लगभग 20000 किलोमीटर की अतिरिक्‍त यात्रा होगी। यह रिले 3 अक्‍तूबर, 2010 नई दिल्‍ली के जवाहर लाल नेहरू स्‍टेडियम में प्रवेश करते समय अंतिम बेटन के साथ पूरी होगी। तब यह मशाल महारानी या उनके प्रतिनिधि को वापस सौंपी जाएगी और उनका संदेश पढ़ा जाएगा।

प्रतीक चिन्‍ह ‘शेरा’ और लोगो:-
2010 दिल्‍ली राष्‍ट्रमंडल का प्रतीक चिन्‍ह भारत का राष्‍ट्रीय पशु शेर है। जिसको शेरा नाम दिया गया है। मेलबर्न के राष्‍ट्रमंडल खेलों के समापन समारोह में विश्‍व के सामने प्रस्‍तुत किया गया शेरा शौर्य, साहस, शक्ति और भव्‍यता की मान्‍यताएं रखता है। यह नारंगी और काली पट्टियों वाला शेर भारत की भावना को प्रकट करता है।

दिल्‍ली राष्‍ट्रमंडल खेलों का लोगो चक्र- राष्‍ट्र की स्‍वतंत्रता, एकता और शक्ति का राष्‍ट्रीय प्रतीक है। ऊपर की ओर सक्रिय यह सतरंगा चक्र मानव आकृति में दर्शाया गया है जो एक गर्वोन्‍नत और रंग बिरंगे राष्‍ट्र की वृद्धि को ऊर्जा देने के लिए भारत के विविध समुदायों को एक साथ लाने का प्रतीक है। लोगो की प्रेरणादायी पंक्ति 'आएं और खेलें' है। यह राष्‍ट्र के प्रत्‍येक व्‍यक्ति को इसमें भाग लेने का एक निमंत्रण है जो अपनी सभी संकुचित भावनाओं को छोड़ें और अपनी सर्वोत्तम क्षमता के अनुसार खेल की सच्‍ची भावना के साथ इसमें भाग लें।

राष्ट्रमंडल खेलों पर एक नजर:-

राष्ट्रमंडल खेलों में भारतीय चुनौती-
राष्ट्रमंडल खेलों में भारत की उम्मीदें जिन खिलाड़ियों से हैं उनमें शूटिंग में अभिनव बिन्द्रा (बीजिंग ओलिम्पक 2008 के ‘शूटिंग स्पर्धा में स्वर्ण पदक, मैनचेस्टर 2002 तथा मेलबर्न 2006 में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक विजेता), कुश्ती में सुशील कुमार (2003, 2005,व 2007 में राष्ट्रमंडल खेलों के कुश्ती चैम्पियनशिप विजेता तथा बीजिंग ओलिम्पक 2008 में कांस्य पदक विजेता) मुक्केबाजी में विजेन्दर सिंह (बीजिंग ओलिम्पक में कांस्य, 2006 मेलबर्न में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में रजत तथा 2006 के दोहा एशियन खेलों में कांस्य पदक) टेनिस के पुरूष वर्ग में लिएंडर पेस व सोमदेव वर्मन और महिला वर्ग में सानिया मिर्जा, बैडमिंटन में साइना नेहवाल तथा तैराकी में विधावल खाडे तैराक प्रमुख हैं।

जिन पर होगी दुनियां की निगाहें:-
राष्ट्रमंडल खेलों में भाग लेने वाले प्रमुख अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों मे आस्ट्रेलिया की महिला तैराक स्टेफनी राइस, पुरुषों में इंग्लैंड के रिबेका एडलिंगटन, एथलेटिक्स में जमैका के उसेन बोल्ट तथा महिलाओं में शैली अनफ्रेजर, साईकिलिंग में स्काटलैंड के क्रिस हॉय, बैडमिंटन में मलेशिया के ली चोंग वी आदि खिलाड़ियों पर सारी दुनियां की निगाहें टिकी होंगी।

19वें राष्ट्रमंडल खेलों के प्रमुख खेल:-
तीरंदाजी, साईकिलिंग, नेटबॉल, टेबल टेनिस, टेनिस, एथलेटिक्स, जिम्नास्टिक, बैडमिंटन, हॉकी, शूटिंग, भारोत्तोलन, मुक्केबाजी, तैराकी, स्क्वैश, कुश्ती, लॉन बाउल्स



प्रमुख सुविधाएं
खिलाड़ियों और मेहमानों के स्वागत के लिए विशेष तौर से 30,000 स्वयंसेवकों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। मेहमानों के यातायात के लिए मेट्रो रेल और बस सेवा को विकसित किया जा रहा है। दर्शकों व खिलाड़ियों के चिकित्सकीय व्यवस्था के लिए डा.राम मनोहर लोहिया अस्पताल, गोविंद बल्लभ पंत अस्पताल और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान चिकित्सा संस्थान में की जा रही है, जहां खिलाड़ियों, अधिकारियों, कर्मचारियों और बाहर से आने वाले दर्शकों के लिए मुफ्त चिकित्सा की सुविधा उपलब्ध होगी।

हॉकी में ‘चक दे’ इण्डिया


खेलों की दुनिया में भारत को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने में हॉकी का बहुत बड़ा योगदान रहा है। हॉकी में भारत न सिर्फ विश्वविजेता रहा है बल्कि विश्व ओलिम्पक में लगातार 6 बार स्वर्ण पदक जीतने का भी विश्व रिकार्ड बनाया है।

आधुनिक स्तर पर खेले जाने वाले इस खेल का जन्म उन्नीसवीं शताब्दी में इंग्लैंड में हुआ। तब हॉकी इंग्लैंड के पब्लिक स्कूलों में खेला जाता था। उस समय इस खेल में गेंद या फिर गेंद के गोल तख्त को डंडे से मारकर विरोधी खेमे केगोल या पाले में डाला जाता था। बाद में इस खेल में चमड़े की गेंद और एक विशेष आकार वाले लकड़ी के डंडे का प्रयोग होने लगा।

हॉकी की अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता का शुभारम्भ सर्वप्रथम सन्1895 में हुआ जिसमें आयरलैंड ने वेल्स को शून्य के मुकाबले तीन गोल से हराया था। इस खेल से संबंधित अंतरराष्ट्रीय नियमों का गठन भी 1895 में ही हुआ जिसका सर्वप्रथम प्रयोग सन् 1908 में लंदन में आयोजित ओलंपिक खेलों के दौरान हुआ।1924 में अंतरराष्ट्रीय हॉकी संघ की स्थापना पेरिस में की गयी।1970 के दशक से हॉकी में कृत्रिम घासयुक्त मैदान का प्रयोग किया जाने लगा। आज विभिन्न प्रकार की राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में कृत्रिम घास के मैदान का प्रयोग किया जाता है।

भारत में हॉकीः विरासत और हकीकत
हॉकी हमारे देश का राष्ट्रीय खेल है। सर्वप्रथम सन् 1885 में राष्ट्रीय हॉकी को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पहले हॉकी क्लब की स्थापना कोलकाता में की गई। ओलिम्पक खेलों में भारतीय हॉकी का वर्चस्व रहा है। ओलिम्पक खेलों में भारतीय हॉकी का प्रथम प्रवेश सन् 1928 में हुआ जिसमें भारत ने बिना एक भी गोल खाये ओलम्पिक में अपना पहला स्वर्ण पदक जीता। इस जीत में हॉकी के महान भारतीय खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद का शानदार प्रदर्शन रहा। मेजर ध्यानचंद को “हॉकी का जादूगर”कहा जाता था।

उन्होंने सन् 1928 से 1956 तक भारतीय हॉकी टीम में एक खिलाड़ी तथा कप्तान के रूप में बेहतरीन प्रदर्शन किया। उस दौर की हॉकी को ‘भारतीय हॉकी का स्वर्ण युग’कहा जाता है। इस दौरान इनके बेहतरीन खेल की बदौलत भारत ने लगातार 6 ओलिम्पक स्वर्ण पदक और 24 मैच जीते।इन मैचों में भारत की तरफ से 178 गोल हुए थे और विरोधी टीम द्वारा केवल 7 गोल किये गये। किसी देश के लिए इससे बड़ी गौरव की बात और क्या हो सकती है?

हॉकी के इस स्वर्णिम काल में भारत ने अपने दमदार खेल से पूरे विश्व का सम्मान पाया और खिलाड़ियों ने विश्व पटल पर देश का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया। मेजर ध्यानचंद के अलावा जिन खिलाड़ियों ने अपने खेल से देश का नाम रोशन किया उनमें लगभग तीन दशकों तक अपना योगदान देने वाले बलबीर सिंह का नाम भी प्रमुख है। यह सिर्फ संयोग ही है कि इस नाम के चार और खिलाड़ियों ने भी भारतीय टीम में अपनी जगह बनायी। भारतीय हॉकी का यह स्वर्ण युग 1960 के रोम ओलिम्पक में खत्म हुआ जब फाइनल मैच में पाकिस्तान ने भारत को हरा दिया। भारतीय टीम द्वारा बनाये गये इस ओलिम्पक रिकार्ड को तोड़ने की बात तो दूर अभी तक कोई भी देश इसके आस-पास भी नहीं पहुंचा है।

भारत में टेनिस की निखरती दुनियां


टेनिस खेल को भारत लाने का श्रेय ब्रिटिश सेना को जाता है। 1870 से लगातार हो रहे प्रयासों के बाद 1880 में भारतीय जमीन पर टेनिस के खेल का पदार्पण हुआ। पंजाब लॉन टेनिस प्रतियोगिता,लाहौर-1885, बंगाल लॉन टेनिस प्रतियोगिता, कलकत्ता-1887, आल इंडिया टेनिस प्रतियोगिता, इलाहाबाद-1910 के आयोजन ने भारत में टेनिस को बढ़ावा देने में मदद की।द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद भारत में दो राष्ट्रीय स्तर के प्रतियोगिताओं- नेशनल चैम्पियनशिप आफ इंडिया ग्रास कोर्ट और आल इंडिया हार्ड कोर्ट चैम्पियनशिप का आयोजन किया गया।
रामानाथन कृष्णन, जयदीप मुखर्जी, प्रेमजीत लाल, लिएंडर पेस, महेश भूपति, जैसे जुझारू खिलाडियों के शानदार प्रदर्शन से टेनिस जगत में भारत ने अपनी साख बनायी। आज उसी साख पर टेनिस सनसनी सानिया मिर्जा, रोहन बोपन्ना, सोमदेव देव वर्मन और प्रकाश अमृतराज जैसे युवा प्रतिभायें टेनिस में अपना कैरियर बना रहे हैं।
टेनिस का प्रारंभिक दौर
प्राचीन काल में टेनिस की शुरूआत यूरोपीय भिक्षुओं द्वारा धार्मिक कार्यक्रमों के दौरान मनोरंजन के लिहाज से की गई थी । उस समय इस खेल में गेंद को हाथ से मारा जाता था। बदलते समय के साथ-साथ लोगों ने चमडे के दस्तानों को प्रयोग में लाना प्रारम्भ किया, फिर गेंद को जोरदार तरीकों से मारने के लिए हैंडल के रूप में धातुओं का प्रयोग किया जाने लगा। जिसे रैकेट का नाम दिया गया। चौदहवीं शताब्दी तक यह खेल काफी प्रचलित हो चुका था।
फ्रांस के मेजर वाल्टर विंगफिल्ड ने 1874 में इस खेल के नियमों को सरकारी दस्तावेजों के साथ पेटेंट कराया, जो आज के आधुनिक समय में भी काफी प्रयोग में आता है। इसी दौरान अमरिका में पहले टेनिस कोर्ट का निर्माण हुआ। धीरे-धीरे रूस, कनाडा, चीन तथा भारत में भी लोगों तक टेनिस की पहुंच हुई।

टेनिस स्कोरिंग के नियम
टेनिस स्कोरिंग का इतिहास दो सिद्धांतों के इर्द-गिर्द ही घुमता रहता है-

1.एक निश्चित अंतराल के बाद आने वाले नंबर प्रणाली को ही मानना। 60 की संख्या को सम्पूर्ण (100) मानकर विजेता की घोषणा की जाती थी।
2.घडी की सुइयों के हिसाब से नंबर या प्वाइंट को मान्य किया जाना। जैसे घडी की सुई हर 15 मिनट के बाद चौथाई,आधा, पौना तथा सम्पूर्णता का आभास कराती है, उसी प्रकार मैच के स्कोर को भी उन्ही के आधार पर 15, 30, 45 व 60 अंक मान कर स्कोर प्रक्रिया चलायी जाती है।
टेनिस ग्रैंड स्लैम
वर्तमान समय ने टेनिस ग्रेंड स्लैम के चार टूर्नामेंट होते हैं-
1.आस्ट्रेलियन ओपन
2.फ्रैन्च ओपन
3.विम्बल्डन
4.यू एस ओपन

आस्ट्रेलियन ओपन
आस्ट्रेलियन ओपन साल का पहला ग्रैंड स्लैम है। यह प्रतियोगिता जनवरी में मेलबर्न पार्क पर खेला जाता है। इस प्रतियोगिता का आयोजन पहली बार 1905 में हुआ था 1905से लेकर 1987 तक यह प्रतियोगिता घास युक्त कोर्ट पर खेला जाता था। 1988 के बाद यह प्रतियोगिता मेलबर्न के हार्ड कोर्ट पर खेला जाने लगा। इस प्रतियोगिता को दो प्रमुख कोर्ट राड लेवल एरीना व हिसेंस एरीना पर खेला जाता है। जहां अस्थायी छतों की व्यवस्था है जो वर्षा और अत्यधिक गर्मी पड़ने पर बंद किया जा सकता है। आस्ट्रेलियन ओपन और विम्बल्डन दो ऐसे ग्रैंड स्लैम हैं, जो इंडोर खेले जाते हैं।
फ्रेंच ओपन
फ्रेंच ओपन का पहला मैच 1891 को स्टेट डे फ्रांस में खेला गया था। इसमें केवल पुरुषों के बीच मुकाबला था। फ्रेंच ओपन टेनिस विश्व कैलेन्डर का दूसरा ग्रैंड स्लैम प्रतियोगिता है। यह प्रतियोगिता भी घास के बने कोर्ट पर खेला जाता है।
विम्बल्डन टेनिस
पहवी बार विम्बल्डन टेनिस प्रतियोगिता का आयोजन सन् 1877 में लन्दन के क्रोकट क्लब में किया गया। यह घास कोर्ट पर खेला जाता है। सामान्यत: विम्बल्डन का रंग हल्का बैंगनी और हरा होता है जिसे खिलाडी अपने पूर्णत: सफेद ड्रेस पहनकर खेलते हैं। पुरुष एकल विजेता को सिल्वर गिल्ट कप तथा महिला एकल विजेता को चमकदार सिल्वर साल्वर दिया जाता है।
सबसे ज्यादा (9 बार) महिला विम्बल्डन एकल चैम्पियनशिप का खिताब मार्टिना नवरातिलोवा के पास है, वहीं सबसे ज्यादा पुरुष एकल खिताब (7 बार) पर पीट सम्प्रास तथा विलियम के पास है।
यूएस ओपन-
सबसे पहले यूएस ओपन का आयोजन सन् 1881 में किया गया था। यह पुरुषों के एकल वर्ग की प्रतियोगिता थी, जिसे "यूएस नेशनल सिंगल्स चैम्पियनशिप फार मैन" का नाम दिया गया। महिलाओं की प्रतियोगिता का आयोजन पहली बार 1887 में अमरिका के फिलाडेल्फिया में खेला गया, वहीं पुरुषों का पहला युगल मुकाबला 1990 में तथा महिलाओं का युगल मुकाबला 1889 में खेला गया।इस प्रतियोगिता की सबसे बडी खासियत यह है कि यह सिमेंटेड पिच से तैयार कोर्ट पर खेला जाता है।

छल कबड्डी आल-ताल...


भारत की परम्पराएं और ग्रंथ जितने लोकप्रिय व आकर्षक हैं, वैसे ही लोकप्रिय हैं यहां के पारंपरिक खेल। यहां के परंपरागत लोकप्रिय खेलों में कबड्डी प्रमुख है। कबड्डी भारत में कई नामों से प्रसिद्ध है। दक्षिण भारत में इसे ‘छेदुगुडु’ या ‘हु-तु-तु’ कहते हैं, जबकि पूर्वी भारत में लड़के कबड्डी को ‘हाडुडु’ और लड़कियां ‘किट-किट’ कहती हैं। उत्तर भारत में इस खेल को ‘कबड्डी’ कहते हैं।
अनोखा हैं कबड्डी का इतिहास
पूर्णरूप से भारतीय खेल कबड्डी का इतिहास लगभग 4,000 साल पुराना है। कुछ लोगों का मानना है कि इसकी शुरुआत कुरुक्षेत्र में महाभारत के युद्ध से हुई जब अर्जुन का पुत्र अभिमन्यु सात योद्धाओं से लड़ रहा था। महाभारत में इसे ‘चक्रव्यूह रचना’ कहते हैं। अभिमन्यु इस व्यूह के तोड़ने में सफल रहा लेकिन मारा गया। कबड्डी के खेल में भी दोनों तरफ़ सात-सात खिलाड़ी होते हैं।

राष्ट्रीय स्तर पर भारत में कबड्डी को सन् 1918 में खेल के रूप में पहचान मिली। इस खेल के नियम भी इसी साल बनाये गये। सर्वप्रथम महाराष्ट्र राज्य ने इस खेल को राष्ट्रीय मंच उपलब्ध कराया। सन् 1923 में बड़ोदा में अखिल भारतीय कबड्डी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इस प्रतियोगिता के सफल आयोजन के बाद राष्ट्रीय स्तर पर देश में कबड्डी की कई प्रतियोगिताएं आयोजित की गयीं। सन् 1938 में कोलकाता में हुए ओलंपिक खेलों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कबड्डी दुनिया के सामने आया। भारत में इस खेल की लोकप्रियता को देखते हुए सन् 1950 में अखिल भारतीय कबड्डी संघ (आईकेएफ) का गठन किया गया। इसका मुख्य काम इस खेल के नियम तय करना है। वर्तमान में कबड्डी पूरे एशिया में खेला जाता है।

ऐसे खेंले कबड्डी
कबड्डी की संरचना आत्मरक्षा तथा आक्रमण के पद्धति को ध्यान में रखकर की गयी है। कबड्डी खेलने के लिए दो टीमें होती हैं, प्रत्येक टीम में 12 खिलाड़ी होते हैं। लेकिन इसमें से छह या सात को ही एक बार कोर्ट (पाले) पर जाने की अनुमति होती है। पांच खिलाड़ी रिजर्व होते हैं। खिलाड़ियों का चयन उम्र और वजन के आधार पर किया जाता हैं।

खेल के मैदान को 12.50 मीटर × 10 मीटर की एक सीमा रेखा से दो भागों मे बांट दिया जाता है। खेल के नियमानुसार टॉस जीतने वाली टीम के खिलाड़ी को विरोधी खेमे में एक ही सांस में कबड्डी.. कबड्डी.. कबड्डी.. बोलते हुए जाना होता है, और उनके खिलाड़ी को छुकर आना होता है। अगर खिलाड़ी छुकर वापस आने में सफल होता है तो उसकी टीम को अंक मिलता है साथ ही वह जिस खिलाड़ी को छूकर आता है, वह खेल से बाहर हो जाता है। विरोधी टीम का यह प्रयास होता है कि वह आने वाले खिलाड़ी को पकड़े और उसे वापस तब तक न जाने दे जब तक कि वह दूसरी सांस न ले ले। यदि खिलाड़ी एक ही सांस में कबड्डी बोलता हुआ अपने कोर्ट में नहीं आ पाता तो उसे खेल से बाहर होना पड़ता है।

इस तरह दोनों टीमें एक के बाद एक अपने खिलाड़ियों को एक दूसरे के कोर्ट में भेजती हैं। यदि खिलाड़ी खेल के दौरान तय सीमा रेखा से बाहर चला जाता है या उसके शरीर का कोई भी भाग सीमारेखा से छु जाता है तो इस अवस्था में भी उस खिलाड़ी को खेल से बाहर होना पड़ता है।

भारत में कबड्डी मुख्य रूप से 3 प्रकार से खेला जाता है- सरजीवनी, जेमीनी और अमर।
सरजीवनी
इस प्रकार के कबड्डी खेल भारतीय कबड्डी संघ के अंर्तगत आते हैं, जिनके नियम भी संघ ही निर्धारित करता है। इस खेल के नियम के अनुसार पहली टीम का खिलाड़ी अगर दूसरे टीम के खिलाड़ी को बाहर करता है, तो पहली टीम का बाहर हुआ खिलाड़ी टीम में फिर से खेलने के लिए आ जाता है।
जेमीनी
इस प्रकार के खेल में जब तक पूरे खिलाड़ी या टीम बाहर नहीं हो जाती, तब तक यह खेल चलता रहता है। इस तरह के खेल में समय का बंधन नहीं होता।
अमर
कबड्डी के इस प्रकार के खेल में अगर किसी खिलाड़ी को विरोधी टीम के खिलाड़ी द्वारा छु लिया जाता है तो वह खिलाड़ी खेल से बाहर नहीं होता बल्कि विरोधी टीम को एक अंक मिल जाता है। इसमें समय निश्चित होता है, व ज्यादा अंक बनाने वाली टीम विजेता होती है। कबड्डी के इस प्रकार का खेल उत्तर भारत के पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में एक घेरे के रूप में खेला जाता है। इसे सर्कल कबड्डी या अमर कबड्डी कहते हैं।यदि इस खेल को बिना तय सीमा रेखा के खेला जाता है तो इस प्रकार के खेल को गुंगी कबड्डी कहते हैं।

कबड्डी के सुप्रसिद्ध खिलाड़ी
अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित कबड्डी खिलाड़ियों में बलविंदर सिंह फिढ़्ढू, सदानंद महादेव शेट्टी, शकुंतला पानघर खोलवरकर, शांताराम जाटु, कुमारी मोनिका नाथ, कुमारी माया काशी नाथ, रामा सरकार, संजीव कुमार, सुंदर सिंह और रमेश कुमार का नाम प्रमुख हैं जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने शानदार प्रदर्शन से कबड्डी में भारत का नाम रोशन किया हैं।

कबड्डी में कला व ताकत की समान रूप से जरूरत होती है। इसमें फुर्ती से आक्रमण करने के अलावा बड़ी चपलता से बचाव का अहम रोल होता है। इस लिहाज से इसमें कुश्ती की भी उम्दा अच्छाइयां नजर आती हैं। कबड्डी बेहद साधारण और कम खर्च का खेल है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके लिए न तो महंगे उपकरणों की जरूरत पड़ती है और न ही बड़े खेल क्षेत्र की। यही कारण है कि कबड्डी ग्रामीण भारत में आज भी बहुत लोकप्रिय है।
धनुर्विद्या में कहां है धनुर्धरों का देश!
धनुर्विद्या में कहां है धनुर्धरों का देश!
भारत का प्राचीन इतिहास गौरवशाली रहा है। इस देश की धरती पर जहां मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम और श्रीकृष्ण जैसे भगवान् अवतरित हुए हैं, वहीं अर्जुन, कर्ण, एकलव्य जैसे अनेक धनुर्धारी भी हुए जिन्होंने अपनी धनुर्विद्या के बल पर अनेक युद्धों में विजय प्राप्त की। गुरु द्रोणाचार्य धनुर्विद्या के महान ज्ञाता थे। कौरव और पाण्डवों ने इन्हीं से धनुष चलाने की कला सीखी थी।

प्राचीन भारत में लोगों को आत्मरक्षा के लिए विशेष रूप से धनुष और तीर चलाने का प्रशिक्षण दिया जाता था। उस समय विभिन्न प्रकार के धनुषों का निर्माण होता था जिनमें लघु धनुष, फ्लैट धनुष और पार धनुष प्रमुख थे। इस विद्या का प्रयोग युद्धों के अलावा जंगली हिंसक जानवरों का शिकार करने के लिए भी किया जाता था। बंदूक निर्माण के पहले तक तीर-धनुष ही शिकार करने का प्रमुख हथियार था। वर्तमान समय में धनुर्विद्या का प्रयोग आत्मरक्षा के अतिरिक्त आखेट, मनोरंजन एवं खेलों में भी होने लगा है। 


ओलिम्पक खेलों में तीरंदाजी
खेलों के रुप में सर्वप्रथम 1972 में म्युनिख, जर्मनी में होने वाले ओलिम्पक में तीरंदाजी को खेल के रुप में शामिल किया गया।
भारत में तीरंदाजी को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 8 अगस्त 1973 को में ‘भारतीय तीरंदाजी संगठन’ का गठन किया गया। यह संगठन धनुर्धारियों को प्रशिक्षित करवाता है और विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाली प्रतियोगिताओं में धनुर्धारियों को अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए मंच प्रदान करवाता हैं।
अंतरराष्ट्रीय स्तर डोला बनर्जी, जयंत ठाकुर, लिम्बा राम, सत्यदेव प्रसाद और तरुनदीप राय जैसे खिलाड़ियों ने अपने शानदार प्रदर्शन से इस खेल में भारत का नाम रोशन किया है। तीरंदाजी को देश में और प्रोत्साहन देने की जरुरत है ताकि इस खेल से जुड़ी नैसर्गिक प्रतिभाओं को अपना हुनर दुनिया के सामने प्रस्तुत करने का समुचित अवसर मिल सके । इससे विश्व मानचित्र पर हमें अपनी एक सहज परंपरागत शस्त्र विद्या में अल्प समय में और ज्यादा प्रतिष्ठा प्राप्त हो सकती है।